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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
तो फिर महशूर उन के साथ अपनी ज़िंदगी होती
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
झुकाना आस्ताँ पर सर कोई मुश्किल नहीं लेकिन
जबीन-ए-बंदगी को हम कब इस क़ाबिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
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ग़ज़ल
इश्क़ है वजह-ए-दो-जहाँ इश्क़ है रूह-ए-दो-जहाँ
ख़म है जबीन-ए-बंदगी इश्क़ की बारगाह में
नसीम शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
जबीन-ए-पुर-शिकन ख़ासान-ए-आलम की नहीं भाती
मगर ये भी है ग़ोग़ा-ए-आवाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
बुतों की बंदगी है शुक्रिया साने' की सन'अत का
वो काफ़िर क्यों हुआ जिस को ये दिलबर याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
उधर है कुफ़्र नाज़ाँ इस तरफ़ ईमान नाज़ाँ है
ये किस के आस्ताँ पर है जबीन-ए-बंदगी अपनी
मुस्तफ़ा हुसैन नय्यर
ग़ज़ल
जबीन-ए-बंदगी जिस दम बनाई ख़ालिक-ए-कुल ने
उसी के साथ डाली है बिना-ए-आस्ताँ शायद
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
झुकाओ सर ख़ुदा के सामने ये सर-कशी छोड़ो
जबीन-ए-किब्र आख़िर बे-नियाज़-ए-बंदगी कब तक