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ग़ज़ल
लाठी पानी में डालों तो वापस आती है पानी पर
दरिया ज़ोर-आवर है कितना मेरा सरमाया है कितना
ख़लील रामपुरी
ग़ज़ल
न कर जबीन-ए-ख़ियाम ज़ख़्मी न सह अज़ाबों की धूप सर पे
न कर हवाओं की परवरिश यूँ कि ज़ोर-आवर तनाब टूटे
असद रिज़वी
कुल्लियात
मीर तक़ी मीर
लेख
आहू-ए-जंगी को दिखलाते हैं सींग (ढींग-लंबा, ज़ोर-आवर, जंगी - बे-वज्ह झगड़ने वाला)...
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
जो आवे मुँह पे तिरे माहताब है क्या चीज़
ग़रज़ ये माह तो क्या आफ़्ताब है क्या चीज़