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हास्य
नज़र नज़र से मिलाएँगे जान-ए-मन हम भी
तराने प्यार के गाएँगे जान-ए-मन हम भी
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
कभी इस से तुम्हें देखूँ कभी उस से तुम्हें देखूँ
मिली हैं इस लिए आँखें मुझे ऐ जान-ए-मन दो दो
हामिद हुसैन हामिद
नज़्म
तू मिरी नज़्म है जान-ए-मन
मैं तआ'क़ुब में जिन के रहूँ उम्र-भर
तू मिरी नज़्म है जान-ए-मन
फ़ैसल अज़ीम
नज़्म
उज़्र-ए-गुनाह
जान-ए-मन मुझ से बजा है ये शिकायत तेरी
कि मिरे शेर में माज़ी का वो अंदाज़ नहीं
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना