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शेर
नज़र है अपनी अपनी शैख़ ने देखा न काबे में
मगर हम ने ख़ुदा को 'जाम' बुत-ख़ाने में देखा है
जाम नवाई बदायुनी
ग़ज़ल
फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़
शिकस्त-ए-तौबा की फिर है बहार ऐ वाइज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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ग़ज़ल
जाम-ब-दस्त-ओ-मय-ब-जाम यूँ ही गुज़ार सुब्ह-ओ-शाम
ज़ीस्त की तल्ख़ियाँ मुदाम पी के पिला के भूल जा
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
थे तिरी बज़्म में सब जाम-ब-कफ़ ऐ साक़ी
इक हमीं तिश्ना-दहन थे तिरे मयख़ाने में