aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तस्मा"
तूमा राबिनसन क़िस्सीस
लेखक
के. मुद्दना मंज़र तमा पुरी
लगे यूँ तो हज़ारों ही तीर-ए-सितम कि तड़पते रहे पड़े ख़ाक पे हमवले नाज़ ओ करिश्मा की तेग़-ए-दो-दम लगी ऐसी कि तस्मा लगा न रहा
माशूक़ की सोहबत अच्छी न थी अक्सर रअशा वग़ैरा का शाकी रहता था। एक दिन बड़ी मिन्नतों के बाद मिर्ज़ा के क़त्ल पर राज़ी हुआ। नोक-ए-शमशीर से दो-चार कचोके देने के बाद कारी ज़ख़्म लगाने के लिए हाथ उठाया ही था कि फ़ालिज गिरा और भला चंगा हाथ पैर तस्मा...
निज़ामी साहिब कुछ ऐसे मेरी तक़रीर में गुम थे कि उन्होंने जब नफ़ी में अपना सर हिलाया तो उन्हें मुतलक़ इसका एहसास नहीं था। फिर जब एक धचके के साथ उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो मैं बहुत आगे निकल चुका था। मैं नूर जहाँ से जिसकी आँखों में...
लेकिन फ़ौरन इस क्यों का मतलब समझ में आगया, जब माता जी ने आगे बढ़ कर मेरे पिस्तौल की परवा न करते हुए मेरे होंटों का बोसा ले लिया और अपनी बांहें मेरी गर्दन में डाल दीं... उस वक़्त ख़ुदा की क़सम मेरा जी चाहा कि गठड़ी एक तरफ़ फेंकूं...
ठाकुर दर्शन सिंह अपनी जगह पर बैठे हुए इस नज़ारे को बहुत ग़ौर और दिलचस्पी से देख रहे थे। वो अपने मज़हबी अक़ाइद में चाहे रासिख़ हों या न हूँ लेकिन तमद्दुनी मुआमलात में वो कभी पेशक़दमी के ख़तावार नहीं हुए थे। इस पेचीदा और वहशतनाक रास्ते में उन्हें अपनी...
तस्माتسمہ
Lace
चमड़े की कम चौड़ी और लम्बी पट्टी, जूते का फ़ीता, चमड़े का कोड़ा, दुर्रा।
Manzar-e-Irfan
संकलन
Aaina-e-Irfan
Kitab-ul-Muqaddas Wahua Kitab-ul-Ahed-ul-Ateeq
Husn-e-Irfan
Manzar Ba Manzar
Irfan-e-Sukhan
Tajalliyat
काव्य संग्रह
तस्मा-कश तराज़ ओ ग़ारत-गर ताराज-साज़काफ़िर यग़माई ओ क़ज़्ज़ाक़ रहज़न आप हैं
आँखें मिरी फ़क़ीर हुईं शौक़-ए-दीद मेंतस्मा कमर में है निगह-ए-इंतिज़ार का
तस्मा खुला जैसे आज़ाद तलाज़मा हो वाहएक पहन के दूसरा जूता ढूँड रहा है
आदाब अर्ज़, माफ़ फ़रमाईएगा। मैं ये सुतूर बग़ैर तआ’रुफ़ के लिख रही हूँ। मगर मुझे चंद ज़रूरी बातें आपसे कहना हैं। आपको मैं एक अ’र्से से जानती हूँ। हर रोज़ सुबह साढ़े आठ बजे जब मैं बिस्तर से उठ कर बालकनी में आती हूँ तो आपको बाज़ार में सैर से...
"अरहर का खेत", दर्याफ़्त किया क्यों जनाब! इस शे'र का ये मुआवज़ा, सुख़न-फ़ह्मी की दाद देता हूँ, कमली को हाजी साहिब ने जनाब किरामन, के सर से उठा कर कातबीन पर डाल दिया (मैंने सहूलत की ख़ातिर इन "तस्मा पा" बुज़ुर्गों के नाम अलैहिदा कर दिए हैं) अगर कोई साहिब...
मेरे काँधे पे बैठा कोईपढ़ता रहता है इंजील ओ क़ुरआन ओ वेद
ग़ुलाम अली ये देख कर सिटपिटा गया... वो कुछ कहना ही चाहता था कि मैंने उसे रोक दिया... अच्छा है रो धो कर सब्र कर ले। रोज़-रोज़ के रोने से तो निजात मिलेगी। थोड़ी देर बाद मैंने उसका सर अपने दोनों हाथों से उठाया। उसके बालों को बराबर किया। गुम...
इस सानिहे में हुक्म या’सूफ़ के साथ में भी घुन की तरह पिस गई थी। हुक्म या’सूफ़ पे मर मिटने का यारा मुझमें न था। क्योंकि मैं ज़रूरत से ज़ियादा ख़ूबसूरत और बा-इख़्तियार लोगों से ख़ौफ़ खाती हूँ। ये मेरा नफ़्सियाती मसअला है। ओ’ह्दा, ताक़त और हुस्न ख़ौफ़ में मुब्तिला...
इस ऐ’लान से सारी कोठी गूँज जाती और बड़ी बेगम पर सदमे का दौरा पड़ जाता। सलमा-बी का मुहासों भरा चेहरा त्योरियों पर बल पड़ने से और भी ज़हर हो जाता। बड़ी बेगम कहीं से बरामद होतीं, चेहरे पर रंज-ओ-मलाल का गहरा असर लिए, कुंजियों के बोझ से लटका हुआ...
अगरचे रह गए थे उस्तुख़्वान-ओ-पोस्त वलेलगाई ऐसी कि तस्मा भी फिर लगा न रहा
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