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ग़ज़ल
काश इस बार मैं दरियाओं से ज़िंदा लौटूँ
क्यूँकि ये ख़ाक तो मिट्टी में दबानी है मुझे
शाहनवाज़ अंसारी
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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
मी न-दानी अव्वल आँ बुनियाद रा वीराँ कुनंद
मुल्क हाथों से गया मिल्लत की आँखें खुल गईं
अल्लामा इक़बाल
कहानी
सआदत हसन मंटो
नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
लबरेज़ मय-ए-ज़ोहद से थी दिल की सुराही
थी तह में कहीं दुर्द-ए-ख़याल-ए-हमा-दानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जुगनू
जिसे दबाने के ब'अद उस को ग़द्र कहने लगे
ये अहल-ए-हिन्द भी होते हैं किस क़दर मासूम