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ग़ज़ल
साफ़ी दिल-ग़ज़ंद की क्या थी दम-ए-बोस-ओ-कनार
बोसे को मुश्किल ठहरना सीने से ता नाफ़ था
ममनून निज़ामुद्दीन
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ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
'नरेश' अक़सा-ए-आलम जगमगा उट्ठे निगाहों में
तसव्वुर में मिरे जिस दम मिरा वो रश्क-ए-हूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हुआ है अबरू-ए-जानाँ से दिल-ए-बेताब सद-पारा
मुक़ाबिल हो नहीं सकता दम-ए-शमशीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर उस के लबों पर हँसी रही लेकिन
दम-ए-विदाअ' वो दर-पर्दा बे-क़रार भी था