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ग़ज़ल
मुख़ालिफ़ है सबा-ए-नामा-बर कुछ और कहती है
उधर कुछ और कहती है इधर कुछ और कहती है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ले उड़ा क्या इजि़्तराब-ए-जुस्तुजू-ए-नामा-बर
मैं जो उछला आ गए जिबरील के पर हाथ में
मुंशी बनवारी लाल शोला
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ग़ज़ल
ले उड़ा क्या इजि़्तराब-ए-जुस्तुजू-ए-नामा-बर
मैं जो उछला आ गए जिब्रील के पर हाथ में
मुंशी बनवारी लाल शोला
लेख
छाती जली है कैसी उड़ती जो ये सुनी है वाँ मुर्ग़-ए-नामा-बर का खाया कबाब कर कर...