हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
कौन मरता है किसी के वास्ते
आदमी सहता है क्या क्या ज़िल्लतें
नफ़्स-ए-मरदूद-ए-शक़ी के वास्ते
हम भी जाएँगे सुलैमाँ तक कभी
अर्ज़ करने इक परी के वास्ते
दर-ब-दर कूचों में हम भी फिर चुके
एक हुस्न-ए-ख़ांगी के वास्ते
किश्त-ज़ार-ए-ज़ाफ़राँ से कम नहीं
रंग-ए-ज़र्द अपना हँसी के वास्ते
क्यूँ दिए हैं तू ने क़स्साम-ए-अज़ल
रंज लाखों एक जी के वास्ते
दो ज़कात-ए-हुस्न कुछ दरवेश को
हैं बड़े रुत्बे सख़ी के वास्ते
इक से इक हैं एक से ले लाख तक
सफ़-शिकन मर्द-ए-जरी के वास्ते
ग़म ने इस दर्जा किया दिल में हुजूम
जा नहीं है ख़ुर्मी के वास्ते
और क्या हो यार की आँखों से काम
ख़ुल्क़ हैं जादूगरी के वास्ते
याद रखना शर्त और मशरूत है
आदमियत आदमी के वास्ते
रंज-ओ-अंदोह-ओ-मलाल-ओ-दर्द-ओ-ग़म
सदमे हैं ये आदमी के वास्ते
सब्ज़ा-ए-मदफ़न उगा था क्यूँ फ़लक
आहूओं की क्या चरी के वास्ते
लड़ गए वो इक ज़रा सी बात में
पहरों रूठे इक घड़ी के वास्ते
जी न घबराए तिरा बे-मश्ग़ले
इश्क़ कर ले दिल-लगी के वास्ते
क्या मुझे पैदा किया है ऐ ख़ुदा
इन बुतों की बंदगी के वास्ते
बे-कसी मेरे लिए पैदा हुई
मैं बना हूँ बे-कसी के वास्ते
बोला मुर्ग़-ए-नामा-बर को कर के ज़बह
ये सज़ा है एलची के वास्ते
धुगदुगी में जान अटकी है मिरी
हाए किस चम्पा-कली के वास्ते
बारयाब-ए-ख़ल्वत-ए-महबूब है
क्या शरफ़ है आरसी के वास्ते
मरक़द-ए-तीरा में काफ़ी है मुझे
दाग़-ए-सौदा रौशनी के वास्ते
कीजिए हर दम अबस तन-पर्वरी
ऐ अजल किस ज़िंदगी के वास्ते
ख़ामा-ए-क़ुदरत ने खींचीं वो भवें
रास्ती ये है कजी के वास्ते
हश्र के दिन 'रिन्द' को बख़्शाईओ
या-अली रूह-ए-नबी के वास्ते
स्रोत:
Deewan-e-Rind(Guldast-e-ishq) (Rekhta Website) (Pg. 273)
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लेखक:
रिन्द लखनवी
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- संस्करण: 1931
- प्रकाशक: मुंशी नवल किशोर, लखनऊ
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