aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "नागवार"
गुंजन नागर शायर बकर
born.1984
शायर
निगार अज़ीम
लेखक
सुंबुल निगार
ज़हीरुन्निसा निगार
अनुज नागेंद्र
born.1976
अमरित लाल नागर
डॉ. निगार सज्जाद ज़हीर
नुज़हत निगार
निगार प्रिंटिंग प्रेस
पर्काशक
फ़रख़न्दा निगार
खालदा निगार
संपादक
फ़रज़ाना निगार
नावाब इमाद जंग बहादुर
सरोश निगार हाशमी
नीगार बानो नाज़
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न थावो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
ख़ुद को दौरान-ए-हाल में अपनेबे-तरह नागवार थे हम तो
नहा-धो कर फ़ारिग़ हुई तो गर्म चादर ओढ़ कर बालकोनी में आ खड़ी हुई। क़रीबन एक घंटा सुल्ताना बालकोनी में खड़ी रही। अब शाम होगई थी। बत्तियां रोशन हो रही थीं। नीचे सड़क में रौनक़ के आसार नज़र आने लगे। सर्दी में थोड़ी सी शिद्दत होगई थी मगर सुल्ताना को...
गुरेज़ का नहीं क़ाइल हयात से लेकिनजो सच कहूँ कि मुझे मौत नागवार नहीं
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
प्रमुख मर्सिया-निगार। मसनवी ‘सहर-उल-बयान’ के लिए विख्यात
ना-गवारنا گوار
dislike
नागवारناگوار
distasteful, unpleasant
Urdu Shairi Ka Tanqeedi Mutalia
आलोचना
तरक़्क़ी पसन्द उर्दू अफ़्साना और चंद अहम अफ़्साना निगार
असलम जमशेदपुरी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Urdu Shairi Ka Tanqeedi Mutala
शायरी तन्क़ीद
अफ़्साना निगार प्रेम चंद
अज़ीमुश्शान सिद्दीक़ी
शोध
ख़्वातीन अफ़्साना निगार
किश्वर नाहीद
कहानियाँ
मंटो का सरमाया-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न
मरिसया और मरसिया निगार
शारिब रुदौलवी
मर्सिया तन्क़ीद
प्रेम चंद का तन्क़ीदी मुताला
क़मर रईस
नॉवेल / उपन्यास तन्क़ीद
उर्दू मरसिए का सफ़र
सय्यद आशूर काज़मी
उर्दू के अहम ड्रामा निगार
इब्राहीम युसूफ़
फिक्शन निगार: मुमताज़ मुफ़्ती
नज़ीर अहमद
हिन्दुस्तान की नामवर हस्तियाँ
पब्लिकेशंस डिवीज़न, दिल्ली
जीवनी
उर्दू नॉवेल का निगार ख़ाना
के.के. खुल्लर
Urdu Nasr Ka Taqeedi Mutala
बोले हसन कि वाह हमें और करें न प्यारइक़रार के चुके हैं शहंशाह-ए-नाम-दार
उनके इस सुलूक से आप यह अंदाज़ा न लगाइये कि उनकी शफ़्क़त कुछ कम हो गयी थी। हरगिज़ नहीं। हक़ीक़त सिर्फ़ इतनी है कि बा’ज़ नागवार हादसात की वजह से घर में मेरा इक़तदार कुछ कम हो गया था। इत्तफ़ाक़ यह हुआ कि मैंने जब पहली मर्तबा बी.ए. का इम्तिहान...
सिवय्याँ दूध शकर मेवा सब मुहय्या हैमगर ये सब है मुझे नागवार ईद के दिन
सौगंधी ने कहना शुरू किया, “मैं बताती हूँ... पंद्रह रुपया भाड़ा है इस खोली का... और दस रुपया भाड़ा है मेरा... और जैसा तुझे मालूम है, ढाई रुपये दलाल के, बाक़ी रहे साढ़े सात। है न साढ़े सात? इन साढ़े सात रूपयों में मैंने ऐसी चीज़ देने का वचन दिया...
चाय का दौर ख़त्म हो चुका था। पत्थरों के चूल्हे में चीड़ के हल्के फुल्के कोयले क़रीब-क़रीब सर्द हो चुके थे। आसमान साफ़ था। मौसम में ख़ुनकी था। हवा में फूलों की महक नहीं थी जैसे रात को उन्होंने अपने इत्रदान बंद कर लिये थे, अलबत्ता चीड़ के पसीने यानी...
कभी भूल कर किसी से न करो सुलूक ऐसाकि जो तुम से कोई करता तुम्हें नागवार होता
मैंने हैरानी से उनकी तरफ़ देखा तो वो बोले, "आक़ा-ए-नामदार का एक अदना हलक़ा बगोश, गर्म पानी के चंद छींटे पड़ने पर नाला-ए-शेवन करे तो लानत है उसकी ज़िंदगी पर। वो अपने महबूब के तुफ़ैल नार-ए-जहन्नम से बचाए। ख़ुदा-ए-इब्राहीम मुझे जुर्रत अता करे, मौला-ए-अय्यूब मुझे सब्र की नेअमत दे।" मैंने...
मैंने ये कहते हुए उसकी तरफ़ देखा और महसूस किया कि उसको मेरी ये बातें नागवार मालूम हुई हैं। चुनांचे मैंने फ़ौरन जेब से वो नुस्ख़ा निकाला जो डाक्टर अरोलकर ने मुझे लिख कर दिया था। ये काग़ज़ मेज़ पर मैंने उसके सामने रख दिया। “ये इबारत मुझ से पढ़ी...
पण्डित जवाहर लाल नेहरू और क़ाएद-ए-आज़म जिनाह के नाम मुझे उम्मीद है कि इससे पहले आपको किसी तवाइफ़ का ख़त न मिला होगा। ये भी उम्मीद करती हूँ कि कि आज तक आपने मेरी और इस क़ुमाश की दूसरी औरतों की सूरत भी न देखी होगी। ये भी जानती हूँ...
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूसमिरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे
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