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ग़ज़ल
नाला-ए-मौज़ूँ से मिस्रा आह का चस्पाँ हुआ
ज़ोर ये पुर-दर्द अपना मतल-ए-दीवाँ हुआ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
सुन लेंगे जो मुझ ग़म-ज़दा के नाला-ए-मौज़ूँ
मुश्ताक़ वो दीवान-ए-हज़ीं के न रहेंगे
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
फिर तसव्वुर ने बढ़ा दी नाला-ए-मौज़ूँ की लय
फिर सवाद-ए-फ़िक्र से इक शे'र पैदा हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जब तसव्वुर ने बढ़ा दी नाला-ए-मौज़ूँ की लय
साज़-ए-बे-आवाज़ से इक शेर पैदा हो गया
सीमाब अकबराबादी
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ग़ज़ल
जा रहा था बे-इरादा बे-ख़याल-ए-सम्त-ओ-राह
और ज़बाँ पर नाला-ए-मौज़ूँ ये मज़लूमाना था
बिस्मिल सईदी
तंज़-ओ-मज़ाह
लाखों बनाव एक बिगड़ना इताब में वो नाला-ए-दिल में ख़स के बराबर जगह न पाए...
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ये ख़ास वक़्तों के कुछ नाला-हा-ए-मौज़ूँ हैं
हमारे शेर 'मुबारक' नहीं सफ़ीने में