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ग़ज़ल
महव-ए-दिलदार हूँ किस तरह न हूँ दुश्मन-ए-जाँ
मुझ पे जब नासेह-ए-बेदर्द को प्यार आ जाए
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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ग़ज़ल
कहाँ तुम दोस्तों के सामने भी पी नहीं सकते
कहाँ हम रू-ब-रू-ए-नासेह-ए-बरहम भी पीते हैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
'नाज़िम' हिकायत-ए-ग़म-ए-हिज्राँ तमाम कर
शुक्र-ए-ख़ुदा कि नासेह-ए-बे-सर्फ़ा-गो गया
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
नज़्म
रिश्वत
ख़ूब हक़ के आस्ताँ पर और झुके अपनी जबीं
जाइए रहने भी दीजे नासेह-ए-गर्दूँ-नशीं
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
कब किया दिल पे मिरे पंद-ओ-नसीहत ने असर
नासेह-ए-बेहूदा-गुफ़्तार की अफ़्वाहें हैं