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ग़ज़ल
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख
सिराज औरंगाबादी
शेर
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख
सिराज औरंगाबादी
क़िस्सा
फ़िराक़ ने फ़िल-फ़ौर आज़ाद की बात काटते हुए जवाब दिया, “लेकिन ये ख़ालिस घी में पका हुआ है।”...
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नहीं है कम ज़र-ए-ख़ालिस से ज़र्दी-ए-रुख़्सार
तुम अपने इश्क़ को ऐ 'ज़ौक़' कीमिया समझो