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ग़ज़ल
ने'मत-ए-ग़म से जो दिल महरूम हो वो दिल नहीं
जाम ख़ाली हो तो क्यों कर उस को पैमाना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
पोशीदा लफ़्ज़ लफ़्ज़ में है दास्तान-ए-कर्ब
'क़ुदसी' किताब-ए-ज़ीस्त का हर बाब देखना
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
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तंज़-ओ-मज़ाह
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
एहतिसाब-ए-ज़ीस्त करने के लिए बैठा था मैं
याद आई दोस्तों की कार-फ़रमाई बहुत
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
शाइ'री ज़ीस्त के ज़ख़्मों की तलाफ़ी तो नहीं