aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पलटना"
ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी, पटना
योगदानकर्ता
ख़ानक़ाह मुनीमिया क़मरिया, पटना
पर्काशक
गवर्नमेंट उर्दू लाइब्रेरी, पटना
दारुल इशाअत ख़ानक़ाह मुजीबिया, पटना
बिहार-ए-उर्दू अकादमी, पटना
पुस्तक भण्डार, पटना
बिहार उर्दू राइटर्स, पटना
असरी संग-ए-मील पब्लिकेशन, पटना
प्रवेज़ बुक हाउस, पटना
नात मरकज़ बिहार, पटना
इक़बाल पब्लिशिंग हाउस, पटना
पॉपुलर साइंस पब्लिशर, पटना
मतबा सईदी, पटना
अफसर-उल-मताबे, पटना
मतबा राजनीत प्रेस, पटना
संपादक
पलट रहे हैं ग़रीब-उल-वतन पलटना थावो कूचा रू-कश-ए-जन्नत हो घर है घर फिर भी
मैं यहाँ से पलटना चाहता हूँऐ ख़ुदा तेरा मशवरा क्या है
न जा कि इस से परे दश्त-ए-मर्ग हो शायदपलटना चाहें वहाँ से तो रास्ता ही न हो
मिरी दुआ को पलटना था फिर उधर 'मोहसिन'बहुत उजाड़ थे मंज़र उफ़ुक़ से पार के भी
ख़ुश्क मश्कीज़ा लिए ख़ाली पलटना है उसेऔर दरियाओं का शीराज़ा बिखर जाना है
एक जगह दूसरी जगह या एक वतन से किसी नए वतन की तरफ़ मुंतक़िल हो जाने को हिजरत कहा जाता है। हिजरत ख़ुद इख़्तियारी अमल नहीं है बल्कि आदमी बहुत से मज़हबी, सियासी और मआशी हालात से मजबूर हो कर हिजरत करता है। हमारे इस इन्तिख़ाब में जो शेर हैं उन में हिजरत की मजबूरियों और उस के दुख दर्द को मौज़ू बनाया गया है साथ ही एक मुहाजिर अपने पुराने वतन और उस से वाबस्ता यादों की तरफ़ किसी तरह पलटता है और नई ज़मीन से उस की वाबस्तगी के क्या मसाएल है इन उमूर को मौज़ू बनाया गया है।
पलटनाپلٹنا
turn, reverse, return
अख़्तर ओरेनवी नंबर
क़मर आज़म हाश्मी
साग़र-ए-नौ, पटना
यादगार-ए-रोज़गार
सय्यद बदरुल हसन
जीवनी
Shumara Number-001-003
शीन मुज़फ़्फ़रपुरी
Jan, Apr 1981ज़बान-ओ-अदब, पटना
Shumara Number-000
कलीमुद्दीन अहमद
मुआसिर, पटना
मदरसा इसलामिया शम्सुलहुदा पटना
नूर अल-वारिस
इस्लामियात
Shumara Number-001-100
अननोन एडिटर
जर्नल, ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी पटना
Shumara Number-001-004
रफ़ी अहमद
Jan 1959सनम
017
Nov 1935नक़ीब, पटना
Shumara Number-136
इम्तियाज़ अहमद
Apr, Jun 2004जर्नल, ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी पटना
Shumara Number-069,070.071,072.073,074
Shumara Number-075,076,077
आबिद रज़ा बेदार
Shumara Number-111
हबीबुर्रहमान चुग़ताई
Mar 1998जर्नल, ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी पटना
Shumara Number-134
मोहम्मद ज़ियाउद्दीन अनसारी
Oct, Dec 2003जर्नल, ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी पटना
Shumara Number-005
अज़ीमुल्लाह अंसारी
ज़बान-ओ-अदब, पटना
Shumara Number-003
मोहम्मद यूनुस
Jul 1984ज़बान-ओ-अदब, पटना
“दादी अम्माँ। और ये। हमारा संगतरों का बाग़ था।” तमारा ने देखा दादी में उससे बहुत हल्की सी मुशाबहत ज़रूर मौजूद थी उसने दूसरा सफ़्हा पलटना चाहा। नुसरतउद्दीन ने फ़ौरन बड़ी मुलाइम से एल्बम उसके हाथ से ले लिया, “तमारा ख़ानम वक़्त ज़ाए’ न करो। वक़्त बहुत कम है।”...
पलटना भी अगर चाहें पलट कर जा नहीं सकतेकहाँ से चल के हम आए कहाँ आहिस्ता आहिस्ता
मंज़िलें भी नहीं मुक़द्दर मेंऔर पलटना हमें गवारा नहीं
गली में उस जगह उस रात को क़व्वाली थी। जिस जगह ये महफ़िल मुनअक़िद होने वाली थी, उसके ऐन ऊपर आपा की एक सहेली का मकान था। बच्चे और छोटी बहन तो सरे शाम ही उस मकान में पहुँच चुकी थीं। अम्मी और आपा वग़ैरा मेरे खाने का इंतिज़ार कर...
पलट के आए ग़रीब-उल-वतन पलटना थाये देखना है कि अब घर कहाँ बनाते हैं
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी हैपलटना बात को दम भर में बात कितनी है
हुज़ूरी-ओ-ग़याब में पड़ा नहींमुझे पलटना आता था पलट गया
तिरे 'इश्क़ में चैन से क्या रहूँ मैं तिरे 'इश्क़ में जब न दे चैन मुझ कोनज़र का पलटना ज़बाँ का बदलना मुक़द्दर की गर्दिश ज़माने की करवट
छू कर बुलंदियों को पलटना है अब मुझेखाने को मेरे घास भी कोहसार में नहीं
आसाँ रुजू-ए-शम्स है लेकिन तिरे मलंगपहुँचें वहाँ जहाँ से पलटना मुहाल हो
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