aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पिटाई"
ये किताबें कुछ ऐसी दिलचस्प थीं कि मैं रात रात भर अपने बिस्तर में दुबुक कर उन्हें पढ़ा करता और सुब्ह देर तक सोया रहता, अम्माँ मेरे इस रवैय्ये से सख़्त नालाँ थीं, अब्बा जी को मेरी सेहत बर्बाद होने का ख़तरा लाहक़ था लेकिन मैंने उनको बता दिया था...
पूछने पर पता चला कि झब्बू से गिनी खाते के मैनेजर ने कुछ डाँट डपट की। इस पर झब्बू ने भी उसे दो हाथ जड़ दिए। इस पर बहुत वावेला मचा और मैनेजर ने अपने बदमाशों को बुला कर झब्बू की ख़ूब पिटाई की और उसे िमल से बाहर निकाल...
मरयम के ख़याल में सारी दुनिया में बस तीन ही शहर थे। मक्का, मदीना और गंज बासौदा। मगर ये तीन तो हमारा आपका हिसाब है, मरयम के हिसाब से मक्का, मदीना एक ही शहर था। अपने हुजूर का शहर। मक्के-मदीने सरीप में उनके हुजूर थे और गंज बासौदे में उनका...
मैंने बाहर जाकर इधर-उधर की बातें करना शुरू कीं। जल्द ही वो मुझसे बातें करने में बे-तकल्लुफ़ी सी महसूस करने लगा। फिर एक दिन मैंने मौक़ा पाकर कुरेदना शुरू किया। कई दिन की जाँ-फ़िशानी के बाद मुझे मालूम हुआ कि वो एक शरीफ़ ज़ादी का नाजायज़ बेटा था। उसके नाना...
अम्माँ-जान ने इल्तिजा की। फिर तनख़्वाह के ख़्वाब देखते हुए हम लोग काम पर तुल गए। एक दिन फ़र्शी दरी पर बहुत से बच्चे जुट गए और चारों तरफ़ से दरी के कोने पकड़ लिए और फिर कमरे के अंदर ही उसे झटकना शुरू कर दिया। दो-चार ने तो लकड़ियाँ...
पिटाईپٹائی
battering, beating, thrashing
मदन कई बार सुंदर को लेकर मेरे हाँ आई। सुंदर अपने नाम की तरह हसीन और नौ-उम्र था, मदन से किसी तरह बड़ा ना मा’लूम होता था। नया-नया कॉलेज से आया तो भूके बंगाली की तरह चौ-मुखे इश्क़ लड़ाने शुरू कर दिए। इसी छीन-झपट में मदन उसे उड़ा लाई। अच्छे...
उन्होंने साढे़ तीन रुपये के टिकट लिए थे। पिक्चर पसंद नहीं आई। लंबी कार का दरवाज़ा खोल दिया और कार दरिया की पुरसुकून लहरों की तरह सात रूपों के ऊपर से गुज़र गई। वो सात रुपये जिन के ऊपर से लहोरी दरवाज़े के एक कुंबे के पूरे सात दिन गुज़रते...
लेकिन अल्लाह पिटाई से बचाना मुझ कोजूता चप्पल न पड़े दहर में खाना मुझ को
‘‘रेशम बना रहे हैं!’’ हमने निहायत ग़ुरूर से कहा और फिर नुस्ख़े की तफ़सील बताई। और फिर घर में वही क़यामत-ए-सुग़रा आ गई जो उमूमन हमारी छोटी-मोटी हरकतों पर आ जाने की आदी हो चुकी थी। ना-शुक्री आपा ने हमारी सख़्त पिटाई की।...
मुझे सबसे ज़्यादा डर बच्चों की तरफ़ से था। अव्वल तो किसी सिख का ए'तिबार नहीं। कब बच्चे ही के गले पर किरपाण चला दे। फिर ये लोग रावलपिंडी से आए थे। ज़रूर दिल में मुसलमानों की तरफ़ से कीना रखते होंगे और इंतिक़ाम लेने की ताक में होंगे। मैंने...
आप पूछेंगे कि मेरे दिल में ऐसा ख़याल क्यों आया? आप इसे ख़याल कह रहे हैं? जनाब ये तो मेरी आरज़ू है, एक देरीना तमन्ना है। ये ख़्वाहिश तो मेरे दिल में उस वक़्त से पल रही है, जब मैं लड़के लड़की का फ़र्क़ भी नहीं जानती थी। इस आरज़ू...
"मैं तो यहीं थी लाहौर में... मेरा तो मुस्तक़िल एड्रेस भी वही है जो कॉलेज में था।" आसिफ़ा ने अब्रू उठा कर ताज्जुब से कहा, "ये कॉलेज वाले भी अजीब हैं। एक ओल्ड स्टूडेंट का पता नहीं कर सके।" फिर आसिफ़ा ने कार में उछल कूद करते अपने बच्चों को...
जब मैं अपने उस्तादों का तसव्वुर करता हूँ तो मेरे ज़ह्न के पर्दे पर कुछ ऐसे लोग उभरते हैं जो बहुत दिलचस्प, मेहरबान, पढ़े लिखे और ज़हीन हैं और साथ ही मेरे मोहसिन भी हैं। उनमें से कुछ का ख़्याल कर के मुझे हंसी भी आती है और उन पर...
सर न्यौढ़ाये मुँह लटकाए हौले-हौले क़दम उठाते वापिस हुए और ज़ीने की चौखट पे बैठ गए। देर तक चुप बैठे रहे। फिर नईमा ने अपने गुलाबी हाथ देखे और दीवार से रगड़ने शुरू कर दिए। “अब पिटाई होगी।”...
"तिजारत वाला तो तिजारत ही करता है। हड्डी की ना सही पिसली की सही।" ये कह कर उन्होंने ज़ोर से क़हक़हा लगाया में उनके हक़ की गहराई पर ग़ौर कर रहा था कि वो मुल्क-उल-मौत आ पहुंचा... वो मूज़ी बला हाथ में लिए हुए चिंघाड़ता हुआ और खाना शुरू करने...
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