aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पेपर-वेट"
पेपर-वेटइस लिए है कि
وہ کتنا خوش تھا۔ آخر چھبیس برس کی عمر بھی کیا ہوتی ہے۔ اسے ترقی دے کر اب بنک کا منیجر بنا دیا گیا تھا۔ آہا! اس کی مسرت کا بھلا کیا ٹھکانہ تھا۔ وہ دفتر سے گھر اڑ کر پہنچا۔ جب وہ مدن مینشنز کے صحن میں داخل ہوا تو دفعتاً اس کے لبوں کی مسرت معدوم ہو گئی۔ اس کی بیوی آج پھر ڈرائنگ روم کی کھڑکی کھولے عین اس کے سامنے کاؤچ پر بیٹھی تھی۔۔۔اس نے فرحت کو بار بار منع کیا تھا کہ اس طرح کھڑکی کھول کر نہ بیٹھا کرے۔ سامنے کے فلیٹ پر غالباً کالج کے چند طلبا رہتے تھے، جو اکثر تاک جھانک کرتے رہتے تھے۔ فرحت کی عمر بہ مشکل بیس برس کی ہوگی۔ کاشمیری ماں کی بیٹی تھی۔ کون تھا جو اسے بے پردہ اپنے سامنے پائے اور پھر دل مسوس کر نہ رہ جائے اور طلبا بظاہر بڑے شریف بنتے تھے۔ کبھی کوئی بدتمیزی نہ کرتے تھے۔ لیکن اس کا خیال تھا کہ ضرور تاک جھانک کرتے ہیں۔ اگر وہ صحن میں گوالے سے بھی باتیں کرتے تو اسے یہی شبہ ہوتا کہ فرحت کی طرف دزدیدہ نگاہوں سے دیکھ رہے ہیں اور اگر فرحت کو سمجھاتا تو وہ کہتی، دیکھ لیں گے تو میرا کیا بگاڑ لیں گے۔ کیا میں اندر دم گھونٹ کر مر جاؤں اور جب بہت خفا ہوتا تو کہتی اچھا آئندہ نہیں بیٹھوں گی۔۔۔ لیکن وعدوں کے باوجود آج پھر وہاں بیٹھی تھی۔
पेपर-वेट के नीचे काग़ज़काग़ज़ पर लफ़्ज़ों का ढेर
जाँ रहती है पेपर-वेट के फूलों मेंवर्ना मेरी मेज़ पे दुनिया रक्खी है
बा'द में था बोझ पेपर-वेट कापढ़ लिया मुझ को लगा कर पिन गया!
पेपर-वेटپیپر ویٹ
paper-weight
“इसकी आदत कैसे पड़ी उसे?” शहाब ने मेज़ पर से पेपर वेट उठा कर दवात पर रख दिया।“ऑप्रेशन हुआ तो बिगड़ गया। दर्द शिद्दत का था। उसका एहसास कम करने के लिए डाक्टर मोरफ़िया के इंजेक्शन देते रहे। तक़रीबन दो महीने तक... बस आदत होगई।”डाक्टर ख़ान ने मोरफ़िया और इसके ख़तरनाक असरात पर एक लेक्चर शुरू कर दिया।
डाक्टर ने पेपर वेट मेज़ पर रख दिया, “इतनी दूर से यहां आने का मक़सद क्या है?” लड़की ने जवाब दिया, “मैंने कहा है न कि मुझे आपसे एक प्राईवेट बात करनी है।”
चौथा सीन चल रहा था। अकबर-ए-आ'ज़म दरबार में जलवा अफ़रोज़ थे और उस्ताद तानसेन बेन्जो पर हज़रत फ़िराक़ गोरखपुरी की सह ग़ज़ला राग मालकोस में गा रहे थे। जो हज़रात कभी इस राग या किसी सह ग़ज़ला की लपेट में आ चुके हैं, कुछ वो ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अगर ये दोनों यकजा हो जाएं तो उनकी संगत क्या क़यामत ढाती है। अकबर-ए-आ'ज़म का पार्ट जिमख़ाने के प्रोपैगंडा सेक्रेट्री सिबग़े (शेख़ सिबग़तुल्लाह) अदा कर रहे थे। सर पर टीन का मसनूई ताज चमक रहा था, जिसमें से अब तक असली घी की लपटें आ रही थीं। ताज-ए-शाही पर शीशे के पेपर वेट का कोह-ए-नूर हीरा जगमगा रहा था।
फिर एक इतवार को शोर से आँख खुली तो देखता हूँ कि बच्चे असील मुर्ग़ को मार मार कर बैज़वी पेपर-वेट पर बिठा रहे हैं। मानता हूँ कि इस दफ़ा मुर्ग़ बेक़सूर था। लेकिन दूसरे दिन इत्तफ़ाक़न दफ़्तर से ज़रा जल्द वापस आगया तो देखा कि महल्ले-भर के बच्चे जमा हैं और उनके सरों पर चील कव्वे मंडला रहे हैं। ज़रा नज़दीक गया तो पता चला कि मेरे नए कैरम बोर्ड पर लंगड़े मुर्ग़ ...
वो खलनडरा पन जो उसकी रगों में फड़कता है, मुर्दा हो जाएगा, वो माँ बन जाएगी, और साबुन के झाग की तरह उसकी तमाम चुलबुलाहटों बैठ जाएंगी। गोद में एक छोटे से रोते पिल्ले को लिए कभी वो मेज़ पर पेपर वेट उठा कर बजाएगी, कभी कुंडी हिलाएगी और कभी कनसुरी तानों में ऊटपटांग लोरियां सुनाएगी... वल्लाह मैं तो पागल हो जाऊंगा।”सुहेल को दीवानगी की हद तक इस हादसे ने परेशान कर रखा था। तीन चार दिन तक उसकी परेशानी का किसी को इ’ल्म न हुआ। मगर इसके बाद जब उसका चेहरा फ़िक्र-ओ-तरद्दुद के बाइ’स मुरझा सा गया तो एक दिन उसकी माँ ने कहा, “सुहेल क्या बात है, आजकल तुम बहुत उदास उदास रहते हो।”
बारी साहब हसब-ए-तौफ़ीक़ सफ़ाई पसंद थे। अपने मेज़ की झाड़ पोंछ और इस के बनाव सिंघार में काफ़ी वक़्त सर्फ़ करते थे। लेकिन इस मुआमले में वो बिलकुल बच्चों के मानिंद थे। नाख़ुन काटने की छोटी सी क़ैंची है, वो भी अपने क़लमदान के साथ सजाट के तौर पर वहां रख दी है, साथ ही शेव करने का उस्तुरा पड़ा है। कहीं से गोल बट्टा मिल गया है तो उसे आपने पेपर-वेट बना लिया है। क...
बहुत पेपर पे छपने हैं तो ठप्पा काट लेते हैंपिता जी मर गए हैं तो अँगूठा काट लेते हैं
उसने तमाम कमरा छान मारा।किताबों की अलमारी, वेस्ट पेपर बास्किट, पतलून जेबें, जैकेट की जेबें... माचिस कहीं न मिली।
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