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परिणाम "फ़रवरी"
मुक़तदी अहमद फ़र्शवरी बदायूनी
संपादक
वो आराम से बैठ जाते और कापी खोल कर कहते, "अख़्फ़श इस्क्वायर जब तुझे चार एक्स का मुरब्बा नज़र आ रहा था तो तू ने तीसरा फ़ार्मूला क्यूँ न लगाया और अगर ऐसा न भी करता तो" और इस के बाद पता नहीं दाऊ जी कितने दिन पानी न पीते।...
ख़ैर हिन्दोस्तान के शायर तो हिंदुस्तानियों ही को मुबारक हों। ख़्वाह वो मीर हों या अनीस हों या अमीर ख़ुसरो साकिन पटियाली वाक़े यूपी लेकिन ग़ालिब के मुताल्लिक़ एक इत्तिला हाल में हमें मिली है जिसकी रोशनी में उनसे थोड़ी रिआयत बरती जा सकती है। हफ़्त रोज़ा क़ंदील लाहौर के...
जनवरी फ़रवरी मार्च में पड़ेगी सर्दीऔर अप्रैल मई जून में हो गी गर्मी
बीवी से वो बहुत ख़ुश था। उनमें कभी लड़ाई न हुई थी, नौकरों पर भी वो नाराज़ नहीं था। इस लिए कि ग़ुलाम मुहम्मद और नबी बख़्श दोनों ख़ामोशी से काम करने वाले मुस्तइद नौकर थे। मौसम भी निहायत ख़ुशगवार था। फरवरी के सुहाने दिन थे जिनमें कुंवारपने की ताज़गी...
मुअर्रिखा 27 फरवरी 60 ई....
फ़रवरीفروری
February
हम दिसम्बर में शायद मिले थे कहीं..!!जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रैल....
“ओटो क्रूगर” फरवरी 1963 के एक ग़ैर मुल्की रिसाले में ‘वियतनाम की जंगल वार’ के उनवान से एक रंगीं तस्वीरों वाला मज़मून छपा है। उन तस्वीरों में गोरिल्ला सिपाहियों को बंदूक़ो का निशाना बनाया जा रहा है। कश्तियों में बैठे हुए गोरिल्ला क़ैदी मेकांग दरिया के पार ले जाये जा...
टांगे अब भी खड़े थे मगर उन पर वो कलग़ियाँ, वो फुंदने, वो पीतल के पालिश किए हुए साज़-ओ-सामान की चमक-दमक नहीं थी। ये भी शायद दूसरी चीज़ों के साथ उड़ गई थी। उसने घड़ी में वक़्त देखा, पाँच बज चुके थे। फ़रवरी के दिन थे। शाम के साए छाने...
1858 ई. में अमन हुआ... हुक्म हुआ कि अय्याम-ए-ग़दर में तुम बाग़ीयों से इख़लास रखते थे,अब गर्वनमेंट से क्यों मिलना चाहते हो... दूसरे दिन मैंने अंग्रेज़ी ख़त उनके नाम लिखवाकर उनको भेजा। मज़मून ये कि बाग़ीयों से मेरा इख़लास मज़िन्न-ए-महज़ है... तहक़ीक़ात फ़रमाई जाये ताकि मेरी सफ़ाई और बेगुनाही साबित...
कभी न सुनी ये बात जो 24 फरवरी के टाइम्स में छपी। ये भी नहीं मालूम कि अख़बार वालों ने छाप कैसे दी। ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त के कालम में ये अपनी नौईय्यत का पहला ही इश्तिहार था। जिसने वो इश्तिहार दिया था, इरादा या उसके बग़ैर उसे मुअम्मे की एक शक्ल दे...
फ़िदवी की गुज़ारिश है कि बवजूह रमज़ान-उल-मुबारक अज़ बतारीख़ रमज़ान बमुताबिक़ 12 फरवरी ता 27 रमज़ान-उल-मुबारक क़मरी हिज्री बमुताबिक़ तारीख़ फ़ुलां ईसवी फ़िदवी को रुख़स्त मकसूबा फ़रमा दी जाये। अहक़र-उल-ईबाद...
सर-ए-दस्त क़ारेईन को ये मा'लूम करके मसर्रत होगी कि मिर्ज़ा के जिस पाले-पोसे कैक्टस को हमने रुख़-ए-रोशन के आगे रखा था, उसे फरवरी में फूलों की नुमाइश में पहला इनाम मिला।...
“मुमताज़ भाई जान कोई लड़की थोड़ा ही हैं।”, सबने फिर क़हक़हे लगाने शुरू’ कर दिए। बौबी मुमताज़ इंतिहाई बद-अख़्लाकी का सबूत देता कमरे से निकल कर जल्दी से बाहर आया। और अपनी ओपल तक पहुँच कर सबको शब-ब-ख़ैर कहने के बा'द तेज़ी से सड़क पर आ गया। रास्ता बिल्कुल सुनसान...
फ़रवरी कर रहा है जुदा सर्दियाँहम उतारेंगे अब ऊन की वर्दियाँ
यह सुरमा बनाने के लिए हाजतमंद को 19 फरवरी का इंतज़ार करना पड़ेगा। उस रोज़ वह बवक़्त तुलू-ए-आफ़ताब पुरानी दातुन को जलाकर उसकी राख में चमगादड़ का ख़ून मिलाए और उससे ये नक़्श बवक़्त सुबह एक घड़ी 15 पल बाद तुलू-ए-आफ़ताब लिखे और इसपर सूरा-ए-फ़लक़ ग्यारह सौ बार पढ़े। फिर...
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