aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बुरीदा-सर"
बुरीदा-सर को सजा दे फ़सील-ए-नेज़ा परदरीदा जिस्म को फिर अर्सा-ए-क़िताल में रख
सलामत 'इश्क़ में है सर सभी काहमीं हैं जो बुरीदा-सर खड़े हैं
बुरीदा सर किए जाएँगे सब जवाँ किरदारवो चेहरा देखना 'आतिफ़' ये दास्ताँ लेगी
तड़पते तन को मिट्टी पर गिरा करसर-ए-सहरा बुरीदा-सर रहा हूँ
हुआ न ऐसा चराग़ाँ कभी सर-ए-मक़्तलहथेलियों पे हैं रौशन बुरीदा-सर के चराग़
मशहूर हो जाने की ख़्वाहिश हर किसी की होती है लेकिन इस ख़्वाहिश को ग़लत तरीक़ों से पूरा करने की कोशिश बहुत सी इन्सानी क़द्रों की पायमाली का बाइस बनती है। ये शेरी इन्तिख़ाब शोहरत की अच्छी बुरी सूरतों को सामने लाता है।
अंजाम पर शायरी किसी भी अमल के नतीजे की मुख़्तलिफ़ शक्लों को बयान करती है। ये शायरी पढ़ कर अमल की माहियत से भी वाक़िफ़ होते हैं और इस के नतीजों के हवाले से भी एक इल्म हासिल होता है। इस सियाक़ में शायरों ने अंजाम की जिस ख़ास जहत पर ज़्यादा तवज्जो दी है वो इश्क़ का अंजाम है। इस में हम सब की दिल-चस्पी होनी चाहिए। ये शायरी पढ़िये और अंजाम की अच्छी बुरी सूरतों को जानिये।
बुरीदा-सरبریدہ سر
Cut head
बच्चों की लाश चाक-रिदा और बुरीदा-सरहर शहर कर्बला के सिवा और कुछ नहीं
हुईं दराज़ जो मेहर-ए-सहर की शमशीरेंतमाम जिस्मों के साए बुरीदा-सर निकले
बुरीदा-सर पड़ा है कुश्ता-ए-उम्मीद सहरा मेंउदासी ख़ाक पर बैठी हुई आँचल भिगोती हे
मैं अपने हाथ में अपना बुरीदा सर ले करचला तो रोक रही थी कोई सदा मुझ को
सितारे जिस जगह पानी के ऊपर बह रहे थेबुरीदा सर कनार-ए-आबजू रक्खा हुआ था
बुरीदा-सर ही नहीं थे लहू में डूबे हुएसुना है नेज़े अदू के भी अश्क-बार गए
ग़म ख़ुशी अच्छा बुरा सब ठीक थाज़िंदगी में जो हुआ सब ठीक था
बोसीदा सी टाट के पीछेकच्ची सी इक झोंपड़िया में
मंसूर की नज़र थी जो दार की तरफ़ सोफल वो दरख़्त लाया आख़िर सर-ए-बुरीदा
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