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नज़्म
गुल-ए-बे-ग़ैरत
इक अजब शान से जोते हुए खेतों के क़रीब
खिल रहे हैं हरी शाख़ों पे गुल-ए-बे-ग़ैरत
सलाम संदेलवी
नज़्म
मैं और शहर
सड़कों पे बे-शुमार गुल-ए-ख़ूँ पड़े हुए
पेड़ों की डालियों से तमाशे झड़े हुए
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
बिकते हैं शहर में गुल-ए-बे-ख़ार हर तरफ़
है बाग़बाँ की गर्मी-ए-बाज़ार हर तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
थकें जो पाँव तो चल सर के बल न ठहर 'आतिश'
गुल-ए-मुराद है मंज़िल में ख़ार राह में है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जिन को रह के काँटों में ख़ुश-मिज़ाज होना था
वो मक़ाम-ए-गुल पा कर बे-दिमाग़ हैं यारो