aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बैठता"
इससे क़ब्ल उसकी ज़िंदगी में कई लड़कियां आचुकी थीं जो उसके अब्रू के इशारे पर चलती थीं, मगर ये सीमा क्या समझती है अपने आपको, “इसमें कोई शक नहीं कि ख़ूबसूरत है जितनी लड़कियां मैंने अब तक देखी हैं उनमें सब से ज़्यादा हसीन है मगर मुझे ठुकरा देना, ये...
ज़हीर जब थर्ड ईयर में दाख़िल हुआ तो उसने महसूस किया कि उसे इश्क़ हो गया है और इश्क़ भी बहुत अशद क़िस्म का जिसमें अक्सर इंसान अपनी जान से भी हाथ धो बैठता है। वो कॉलिज से ख़ुश ख़ुश वापस आया कि थर्ड ईयर में ये उसका पहला दिन...
एक दिन मैं और मेरा भाई ठट्ठियाँ के जौहड़ से मछलियाँ पकड़ने की नाकाम कोशिश के बाद क़स्बे को वापस आ रहे थे तो नहर के पूल पर यही आदमी अपनी पगड़ी गोद में डाले बैठा था और उसकी सफ़ेद चुटिया मेरी मुर्ग़ी के पर की तरह उसके सर से...
सुनार की उंगलियां झुमकों को ब्रश से पॉलिश कर रही हैं। झुमके चमकने लगते हैं, सुनार के पास ही एक आदमी बैठा है, झुमकों की चमक देख कर उसकी आँखें तमतमा उठती हैं। बड़ी बेताबी से वो अपने हाथ उन झुमकों की तरफ़ बढ़ाता है और सुनार कहता है, “बस...
मैं हैरान तो हुआ कि मिर्ज़ा साहब ने बाइस्किल भेजवा देने में इस क़द्र उज्लत से क्यों काम लिया लेकिन इस नतीजे पर पहुंचा कि आदमी निहायत शरीफ़ और दयानतदार हैं। रूपये ले लिये थे तो बाइस्किल क्यों रोक लेते। नौकर से कहा, ‘‘देखो ये औज़ार यहीं छोड़ जाओ और...
बैठताبیٹھتا
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नागपाड़े में जब शाम को पान वाले की दुकान पर बैठता था तो अक्सर ऐक्टर एक्ट्रसों की बातें हुआ करती थीं। क़रीब क़रीब हर ऐक्टर और ऐक्ट्रस के मुतअ’ल्लिक़ कोई न कोई स्कैंडल मशहूर था मगर राजकिशोर का जब भी ज़िक्र आता, शामलाल पनवाड़ी बड़े फ़ख़्रिया लहजे में कहा करता,...
जी ख़ुश हुआ है राह को पुरख़ार देखकर मिर्ज़ा बड़े सादा-लौह और साफ़-दिल इंसान थे। अक्सर ऐसी हरकतें कर बैठते जिनका नतीजा उनके हक़ में बहुत बुरा होता था। चुनांचे एक दिन महबूब की गली में बैठे-बैठे किसी ज़रा सी ग़लती पर पासबान से अपनी चिंदिया गंजी कराली, इस वाक़िआ...
जोगिंदर सिंह के अफ़साने जब मक़बूल होना शुरू हुए तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो मशहूर अदीबों और शायरों को अपने घर बुलाए और उनकी दा’वत करे। उसका ख़याल था कि यूं उस की शोहरत और मक़बूलियत और भी ज़्यादा हो जाएगी। जोगिंदर सिंह बड़ा ख़ुशफ़हम इंसान...
सितम ये था कि बेगम साहिबा भी आए दिन इस मश्ग़ले के ख़िलाफ़ सदा-ए-एहतिजाज बुलंद करती रहती थीं। हालाँकि उन्हें इसके मौक़े मुश्किल से मिलते। वो सोती ही रहती थीं कि उधर बाज़ी जम जाती थी। रात को सो जाती थीं। तब कहीं मिर्ज़ा जी घर में आते थे। हाँ...
उनके जाने के बाद मैं वाक़ई महसूस करता हूँ कि बस अब चल-चलाव लग रहा है। सांस लेते हुए धड़का लगा रहता है कि रिवायती हिचकी न आजाए। ज़रा गर्मी लगती है तो ख़्याल होता है कि शायद आख़िरी पसीना है और तबीयत थोड़ी बहाल होती है तो हड़बड़ाकर उठ...
जब रोने बैठता हूँ तब क्या कसर रहे हैरूमाल दो दो दिन तक जूँ अब्र तर रहे है
मैं आज उस वाक़िए’ का हाल सुनाता हूँ। तुम शायद ये कहो कि मैं अपने आपको धोका दे रहा हूँ। लेकिन तुमने कभी इस बात का तो मुशाहिदा किया होगा कि वो शख़्स जो ज़िंदगी से मुहब्बत करता है कभी-कभी ऐसी हरकतें भी कर बैठता है जिनसे सर्द-मेहरी और ज़िंदगी...
पुतली का रोब सब पे अयाँ है ख़ुदाई में बैठा है शेर पंजों को टेके तराई में...
बैठता उठता था मैं यारों के बीचहो गया दीवार दीवारों के बीच
तमाम रास्ते मिर्ज़ा साहब चहल-क़दमी फ़रमाते जाते हैं। मैं हर दो तीन लम्हे के बाद अपने आपको उन से चार पांच क़दम आगे पाता हूँ। कुछ देर ठहर जाता हूँ। वो साथ आ मिलते हैं तो फिर चलना शुरू कर देता हूँ। फिर आगे निकल जाता हूँ। फिर ठहर जाता...
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