aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बैठते"
सुबह का वक़्त है, मुर्ग़ अजानें दे रहे हैं। मिर्ज़ा नौशा हवादार में बैठा है जिसे चार कहार लिए जा रहे हैं। मिर्ज़ा नौशा के बैठने से पता चलता है कि सख़्त उदास है, उदासी की वजह ये है कि उसने मुशायरे में अपनी बेहतरीन ग़ज़ल सुनाई मगर हाज़िरीन ने...
बड़ी मुमानी का कफ़न भी मैला नहीं हुआ था कि सारे ख़ानदान को शुजाअ'त मामूँ की दूसरी शादी की फ़िक्र डसने लगी। उठत बैठते दुल्हन तलाश की जाने लगी। जब कभी खाने पीने से निमट कर बीवियाँ बेटियों की बरी या बेटियों का जहेज़ टाँकने बैठतीं तो मामूँ के लिए...
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहींउड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह
लेकिन तहसीलदार साहब और हेड-मास्टर साहब की नेक नियती यहीं तक महदूद न रही। अगर वह सिर्फ़ एक आ’म और मुहमल सा मश्विरा दे देते कि लड़के को लाहौर भेज दिया जाये तो बहुत ख़ूब था, लेकिन उन्होंने तो तफ़सीलात में दख़ल देना शुरु कर दिया और हॉस्टल की ज़िंदगी...
जब सौगंधी ने कहा, “नहीं...” तो रामलाल की आवाज़ फिर ऊंची हो गई, “तो दरवाज़ा क्यों नहीं खोलती...? भई हद हो गई है, क्या नींद पाई है। यूं एक एक छोकरी उतारने में दो दो घंटे सर खपाना पड़े तो मैं अपना धंदा कर चुका... अब तू मेरा मुँह क्या...
अगर आपको बस यूँही बैठे बैठे ज़रा सा झूमना है तो शराब शायरी पर हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए। आप महसूस करेंगे कि शराब की लज़्ज़त और इस के सरूर की ज़रा सी मिक़दार उस शायरी में भी उतर आई है। ये शायरी आपको मज़ा तो देगी ही, साथ में हैरान भी करेगी कि शराब जो ब-ज़ाहिर बे-ख़ुदी और सुरूर बख़्शती है, शायरी मैं किस तरह मानी की एक लामहदूद कायनात का इस्तिआरा बन गई है।
तख़्लीक़ी ज़बान तर्सील और बयान की सीधी मंतिक़ के बर-अक्स होती है। इस में कुछ अलामतें है कुछ इस्तिआरे हैं जिन के पीछे वाक़यात, तसव्वुरात और मानी का एक पूरा सिलसिला होता है। सय्याद, नशेमन, क़फ़स जैसी लफ़्ज़ियात इसी क़बील की हैं। शायरी में सय्याद चमन में घात लगा कर बैठने वाला एक शख़्स ही नहीं रह जाता बल्कि उस की किरदारी सिफ़त उस के जैसे तमाम लोग को उस में शरीक कर लेती है। इस तौर पर ऐसी लफ़्ज़ियात का रिश्ता ज़िंदगी की वुसअत से जुड़ जाता है। यहाँ सय्याद पर एक छोटा सा इन्तिख़ाब पढ़िए।
बैठतेبیٹھتے
sitting
चुनांचे प्रभात फेरी निकालते हुए जब सुंदर लाल बाबू, उसका साथी रसालू और नेकी राम वग़ैरा मिलकर गाते, “हथ लाइयाँ कुम्हलाँ नी लाजवंती दे बूटे...” तो सुंदर लाल की आवाज़ एक दम बंद हो जाती और वो ख़ामोशी के साथ चलते-चलते लाजवंती की बाबत सोचता... जाने वो कहाँ होगी, किस...
गर्द-ए-रह के बैठते ही देखता क्या हूँ 'जमाल'जानी-पहचानी हुई हर शक्ल अन-जानी हुई
एक रुक्न ने जो चश्मा लगाए थे और हफ़्तावार अख़बार के मुदीर-ए-ए’ज़ाज़ी थे, तक़रीर करते हुए कहा, “हज़रात हमारे शह्र से रोज़ ब-रोज़ ग़ैरत, शराफ़त, मर्दानगी, नेको-कारी-ओ-परहेज़गारी उठती जा रही है और इसकी बजाए बे-ग़ैरती, ना-मर्दी, बुज़दिली, बदमाशी, चोरी और जालसाज़ी का दौर-दौरा होता जा रहा है। मुनश्शियात का इस्ते’माल...
झूरी काछी के पास दो बैल थे। एक का नाम था हीरा और दूसरे का मोती। दोनों देखने में ख़ूबसूरत, काम में चौकस, डीलडौल में ऊँचे। बहुत दिनों से एक साथ रहते रहते, दोनों में मुहब्बत हो गई थी। जिस वक़्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जुते जाते...
"वो जो बैठे हैं" मैंने आँसू पी कर कहा। "बकवास न कर" मेरा भाई चिड़ गया और आँखें निकाल कर बोला। हर बात में मेरी नक़ल करता है कुत्ता शेख़ी ख़ोरा।"...
आप मानें न मानें मगर मैं क़समिया कहता हूँ कि इस बार उसने फिर झूट बोला। इस मर्तबा फिर उसके लहजे ने चुगु़ली खाई और मुझे उससे दिलचस्पी पैदा हो गई। इसलिए कि मैंने अपने दिल में क़सद कर लिया था कि उसे ज़रूर अपने पास बिठाऊंगा और अपना सिगरेट...
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगताये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता
वो उससे कुछ अजीब क़िस्म की बेएतिनाई और बेइल्तिफ़ाती बरतती थी। उसके कहने पर फ़ौरन सज-बन कर सिनेमा जाने पर तैयार हो जाती थी। मगर जब वो अपनी सीट पर बैठते तो इधर उधर निगाहें दौड़ाना शुरू कर देती। कोई उसका शनासा निकल आता तो ज़ोर से हाथ हिलाती और...
“यही पाप है”, मदन ने और चिड़ते हुए कह, “वो पीछा ही नहीं छोड़ती तुम्हारा। जब देखो जोंक की तरह चिम्टी हुई है। दफ़ान ही नहीं होती।” “हाँ”, इंदू ने मदन की चारपाई पर बैठते हुए कहा, “बहनों और बेटियों को यूँ तो धुतकारना नहीं चाहिए। बेचारी दो दिन की...
सामने वाली बिल्डिंग का एक कमरा... ये कमरा पुरतकल्लुफ़ तरीक़े से सजा हुआ है। एक लड़की और एक लड़का जिसकी उम्र में तक़रीबन दो बरस का फ़र्क़ है, लड़की छः बरस की और लड़का आठ बरस का है। दोनों अपने बाप के पास बैठे हैं और उससे खेल रहे हैं।...
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