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ग़ज़ल
जो है गोशा-नशीं तेरे ख़याल-ए-मस्त-ए-अबरू में
वो है बैतुस-सनम में भी तो है बैतुल-मुक़द्दस में
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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