आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बैरन"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "बैरन"
ग़ज़ल
बैरन रीत बड़ी दुनिया की आँख से जो भी टपका मोती
पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा
मीराजी
कहानी
“फिर हम अपने बैरन के लिए साढे़ बारह बरस की लाएँगे ख़ाला चहकीं।” “हुश्त!” मामूँ शरमा गए।...
इस्मत चुग़ताई
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "बैरन"
अन्य परिणाम "बैरन"
ग़ज़ल
रुत आए रुत जाए बैरन हर मौसम में बरसी हैं
तेरे ग़म ने इन आँखों को बादल कर के छोड़ दिया
ज्ञानेंद्र विक्रम
ग़ज़ल
मुझ से ज़ियादा वक़्त भला क्यों बंसी बैरन पाती है
पूछ रही है राधा प्यारी अपने श्याम सलोने से