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ग़ज़ल
ये क़ुर्ब ओ बोद ब-मिक़दार-ए-शौक़ सालिक हैं
जिसे तू दूर समझता है दूर कुछ भी नहीं
जलालुद्दीन अकबर
ग़ज़ल
दिल जला फिर ख़ुद जले फिर सारी दुनिया जल उठी
सोज़ लाए थे ब-मिकदार-ए-पर-परवाना हम
सीमाब अकबराबादी
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ग़ज़ल
काबा को जा न 'शौक़' अभी निय्यत-ए-ज़िंदगी ब-ख़ैर
हम भी चलेंगे तेरे साथ अब की बहार देख कर
शौक़ क़िदवाई
ग़ज़ल
का'बे को जा न 'शौक़' अभी निय्यत-ए-ज़िंदगी ब-ख़ैर
हम भी चलेंगे तेरे साथ अब की बहार देख कर
शौक़ क़िदवाई
ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ तकमील-ए-तमन्ना 'शौक़' क्या होती
कि हम ने औरतें पाईं कभी अंधी कभी कानी
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
अजब आलम है 'शौक़' एहसास-ए-ग़म की पासदारी का
ब-ज़ाहिर ख़ुश्क हैं आँखें मगर दामान-ए-दिल नम है