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ग़ज़ल
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
रोक सको तो पहली बारिश की बूंदों को तुम रोको
कच्ची मिट्टी तो महकेगी है मिट्टी की मजबूरी
मोहसिन भोपाली
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शेर
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
आँगन आँगन फूल खिलेंगे प्यार की ख़ुशबू महकेगी
अम्न का परचम हाथों में लें काम न लें तलवारों से