aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुख़ातिब"
मरातिब अख़्तर
शायर
शम्सुल-मुलूक मुसाहिब
लेखक
दफ्तर सद्र-ए-मुहासिब सरकार आली
संपादक
मोहम्मद मुसाहिब अली ख़ान
तंजीमुल मकातिब जौहरी मोहल्ला, लखनऊ
पर्काशक
मुसाहिब अली सिद्दीक़ी
मकतबा दारुल-मुसाहिब, सुल्तानपुर
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी होतुम को देखें कि तुम से बात करें
मुख़ातिब है बंदे से परवरदिगारतू हुस्न-ए-चमन तू ही रंग-ए-बहार
मेरे अशआर वो सुन सुन के मज़े लेता रहामैं उसी से हूँ मुख़ातिब वो ये समझा भी नहीं
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियाँहर इक को है गुमाँ कि मुख़ातिब हमीं रहे
लड़की ख़ामोश रही। डाक्टर ने उसका बुर्क़ा उतारा और स्क्रीन के पीछे खड़ा कर दिया। फिर उसने स्विच ऑन किया। मैंने शीशे में देखा तो मुझे उसकी पसलियां नज़र आईं। उसका दिल भी एक कोने में काले से धब्बे की सूरत में धड़क रहा था। डाक्टर सादिक़ पाँच छः मिनट...
मुख़ातिबمخاطب
to address
Urdu Adab Mein Talmeehat
Jangal Se Pare Suraj
Shumarah Number-009, 010
ज़ीशान हैदर
तंज़ीम-उल-मकातिब
Shumara Number-005
अननोन एडिटर
Jul 1983तंज़ीम-उल-मकातिब
Shumara Number-011
सय्यद कर्रार हुसैन
Shumara Number-002
May 1984तंज़ीम-उल-मकातिब
Shumara Number-010
Sep 1984तंज़ीम-उल-मकातिब
Ek Muallim Ki Khud Guzasht
Tohfa-e-Shaheem
नात
Bad Az Ba Sawadi
अनुवाद
थैले ने ये सुन कर एक अजीब सा क़हक़हा बुलंद किया और मुझ से कहा, “थैला सिर्फ़ ये बताने चला है कि वो गोलियों से डरने वाला नहीं।” फिर वो अपने साथियों से मुख़ातिब हुआ, “तुम डरते हो तो वापस जा सकते हो।” ऐसे मौक़ों पर बढ़े हुए क़दम उल्टे...
मिर्ज़ा नौशा मुस्कुराया, “भाव बताकर गाओ तो कुछ भाव से अंगों से शायद समझ लूं।” अब चौदहवीं को जगत सूझी, फुल्की सी नाक चढ़ा कर कहा, “भाव का भाव महंगा पड़ जायेगा।” मिर्ज़ा नौशा एक लम्हे के लिए ख़ामोश हो गया, फिर चौदहवीं से मुख़ातिब हुआ, “आपको ग़ालिब का कलाम...
एक जवान ने गूंजती हुई आवाज़ों से मुख़ातिब हो कर ये बड़ी गाली दी और रब नवाज़ से कहा, “सूबेदार साहब गालियां दे रहे हैं। अपनी माँ के यार।” रब नवाज़ ये गालियां सुन रहा था जो बहुत उकसाने वाली थीं। उसके जी में आई कि बज़न बोल दे मगर...
वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ थामुझ से हर वक़्त मुख़ातिब रही ग़ैरत मेरी
हसरत है तुझे सामने बैठे कभी देखूँमैं तुझ से मुख़ातिब हूँ तिरा हाल भी पूछूँ
आगे बढ़ कर रामलाल ने मोटर के अंदर बैठते हुए आदमियों से कुछ कहा। इतने में जब सौगंधी मोटर के पास पहुंच गई तो रामलाल ने एक तरफ़ हट कर कहा, “लीजिए वो आ गई।” “बड़ी अच्छी छोकरी है थोड़े ही दिन हुए हैं इसे धंदा शुरू किये।” फिर सौगंधी...
जब कॉलिज में था तो कई लड़कियां उसपर जान छड़कतीं थीं मगर वो बेएतिनाई बरतता, आख़िर उस की आँख एक शोख़-ओ-शंग लड़की जिसका नाम सीमा था, लड़ गई। सलीम ने उससे राह-ओ-रस्म पैदा करना चाहा। उसे यक़ीन था कि वो उसकी इलतफ़ात हासिल कर लेगा। नहीं, वो तो यहां तक...
शकीला ने जवाब दिया, “कपड़े का ग़ज़... एक गज़ तो ये तुम्हारे सामने पड़ा है, ये लोहे का है। एक दूसरा गज़ भी होता है जो कपड़े का बना होता है। जाओ छः नंबर में जाओ और दौड़ के उनसे ये गज़ ले आओ। कहना शकीला बीबी मांगती हैं।” छः...
उसने उन लड़कियों में से एक को मुंतख़ब करना चाहा... देर तक वो ग़ौर करता रहा... एक लड़की बड़ी शरीर थी... दूसरी उससे कम। उसने सोचा शरीर अच्छी रहेगी जो उसको शरारतों का सबक़ दे सके। ये शरीर लड़की ख़ूबसूरत थी, उसके बदन के आज़ा भी बहुत मुनासिब थे। बारिश...
सब हँसने लगे। सरदार बनता सिंह ने आगे बढ़ कर कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरा और जमादार हरनाम सिंह से कहा, “नहीं जमादार साहब, चपड़ झुन झुन हिंदुस्तानी है।” जमादार हरनाम सिंह हंसा और कुत्ते से मुख़ातिब हुआ, “निशानी दिखा ओय?”...
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