aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुजरिम-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार"
मतबा रास्त-ए-गुफ़्तार, अमृतसर
पर्काशक
मकतबा-ए-गुलज़ार-ए-अदब, रावलपिंडी
मतबा गुलज़ार-ए-हिन्द
मतबा गुलज़ार-ए- इब्राहीम
गुलज़ार-ए-अदब, नेपालगंज
मतबा गुलज़ार-ए-इब्राहीम, मुरादाबाद
गुलज़ार-ए-मोहम्मदी प्रेस, लाहौर
मत्बा गुलज़ार-ए-अवध, लखनऊ
मतबा गुलज़ार-ए-अहमदी, मुरादाबाद
अंजुमन गुलज़ार-ए-अदब, पटना
मतबूआ गुलज़ार-ए-इब्राहीम, मालेरकोटला
गुलज़ार-ए-हिन्द स्टीम प्रेस, लाहौर
मत्बा आली गुलज़ार-ए-मोहम्मदी, लखनऊ
गुलज़ार-ए-हिन्द एस्टीम प्रेस, लाहौर
गुलज़ार-ए-आम प्रेस, लाहौर
मुझ से बरहम है मिज़ाज-ए-पीरीमुजरिम-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार हूँ मैं
दिल गया शोख़ी-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँअब वो पैराया-ए-इज़हार कहाँ से लाऊँ
इस शोख़ी-ए-गुफ़्तार पर आता है बहुत प्यारजब प्यार से कहते हैं वो शैतान कहीं का
बाक़ी है वही शोख़ी-ए-गुफ़्तार अभी तकदीवाने पहुँचते हैं सर-ए-दार अभी तक
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा हैदावा-ए-जम'इय्यत-ए-अहबाब जा-ए-ख़ंदा है
मौत सब से बड़ी सच्चाई और सब से तल्ख़ हक़ीक़त है। इस के बारे मे इंसानी ज़हन हमेशा से सोचता रहा है, सवाल क़ाएम करता रहा है और इन सवालों के जवाब तलाश करता रहा है लेकिन ये एक ऐसा मुअम्मा है जो न समझ में आता है और न ही हल होता है। शायरों और तख़्लीक़-कारों ने मौत और उस के इर्द-गिर्द फैले हुए ग़ुबार में सब से ज़्यादा हाथ पैर मारे हैं लेकिन हासिल एक बे-अनन्त उदासी और मायूसी है। यहाँ मौत पर कुछ ऐसे ही खूबसूरत शेर आप के लिए पेश हैं।
तौबा, उर्दू की मधुशाला शायरी की मूल शब्दावली है । तौबा को विषय बनाते हुए उर्दू शायरी ने अपने विषय-वस्तु को ख़ूब विस्तार दिया है । ख़ास बात ये है कि पश्चाताप का विषय उर्दू शायरी में शोख़ी और शरारत के पहलू को सामने लाता है । मदिरा पान करने वाला पात्र अपने उपदेशक के कहने पर शराब से तौबा तो करता है लेकिन कभी मौसम की ख़ुशगवारी और कभी शराब की प्रबल इच्छा की वजह से ये तौबा टूट जाती है । यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में आप उपदेशक और शराब पीने वाले की शोख़ी और छेड़-छाड़ का आनंद लीजिए ।
शायरी में सब्र आशिक़ का सब्र है जो तवील बहर को विसाल की एक मौहूम सी उम्मीद पर गुज़ार रहा होता है और माशूक़ उस के सब्र का बराबर इम्तिहान लेता रहता है। ये अशआर आशिक़ और माशूक़ के किर्दार की दिल-चस्प जेहतों का इज़हारिया हैं।
मुजरिम-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तारمجرم شوخئ گفتار
guilty of cheerful, mischievous, coquettish conversation
गुलशन-ए-गुफ़्तार
ख़्वाजा खां हमीद औरंगाबादी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
नुशूर वाहिदी
काव्य संग्रह
गुल-ए-गुफ़्तार
कृष्ण कुमार तूर
शाइरी
हक़ीक़त-ए-गुलज़ार साबरी
शाह मोहम्मद हसन साबरी चिशती
चिश्तिय्या
मकारिम-ए-मसीह-ए-मिल्लत
वाहिद नज़ीर
नात
नग़मा-ए-गुलज़ार
रशीद रामपुरी
Shumara Number-000
अननोन एडिटर
Sep, Oct 1916रिसाला-ए-गुलज़ार
मौज-ए-शफ़क़ मौज-ए-ग़ुबार
नूर प्रकार
नज़्म
मुबाहिसा-ए-गुलज़ार-ए-नसीम
आलोचना
मोहम्मद शफ़ी शीराज़ी
शायरी तन्क़ीद
तमद्दुन-ए-अरब
गुस्ताव ले बॉन
इतिहास
गुलज़ार-ए-नसीम
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
मसनवी
गुलज़ार-ए-दबिस्तान
शैख़ सादी शीराज़ी
भाषा
तमद्दुन-ए-हिन्द
गुलज़ार-ए-दाग़
दाग़ देहलवी
दीवान
بذوق شوخی اعضا تکلف بار بستر ہے معاف پیچ و تاب کشمکش ہر تار بستر ہے
कौन कहता है कि ये शोख़ी-ए-बेदाद नहींतुम ने मिलने को कहा भी था कहीं याद नहीं
بہ پاس شوخی مژگاں سر ہر خار سوزن ہے تبسم برگ گل کو بخیہ دامن نہ ہوجاوے
ये सिलसिला-ए-शोख़ी-ए-जानाना नया हैइरशाद हुआ है कि ये दीवाना नया है
इक अश्क सर-ए-शोख़ी-ए-रुख़सार में गुम हैआईना भी उस हुस्न के असरार में गुम है
शोख़ी-ए-दर्द-ए-दिल-ए-ज़ार गुल-ए-नग़्मा हैउस का हर लहजा-ए-गुफ़्तार गुल-ए-नग़्मा है
आज क्यूँ पंद-गर-ए-वक़्त की तक़रीरों मेंलज़्ज़त-ए-शोख़ी-ए-गुफ़्तार नहीं दीवानो
शोख़ी-ए-गर्मी-ए-रफ़तार दिखाते न चलोफ़ित्ना-ए-हश्र को सीमाब बताते न चलो
छू के आई है सबा आज ज़रूर उन के क़दमवर्ना ये शोख़ी-ए-रफ़्तार कहाँ से आई
दो रोज़ बाद इतवार था और इतवार की शाम को गौतमा फिर आई... अब वो हर दूसरे तीसरे, शाम को कभी अकेली और कभी अपनी छोटी बहन के हमराह रेस्तोरान में आती और चाय वग़ैरा पी कर वापस चली जाती। पाल और मैं, रेस्तोरान क़रीब-क़रीब हर रोज़ बिला नाग़ा आते थे और अब हम बाग़ों के चक्कर भी काटने लगे थे। पाल गौतमा के लिए ज़्यादा बेचैन था। वो पढ़ी लिखी, ख़ूबसूरत लड़की चाहता थ...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books