aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुनाजात"
मुनज़्ज़ा एहतिशाम गोंदल
born.1984
लेखक
मुनज़्ज़ा सहर
born.1980
शायर
मौना शह्ज़ाद
मुनाज़िर हुसैन नज़र
मुनज़्ज़ा अनवर गोइंदी
मुनैज़ा नूरुलऐन सिद्दीक़ी
मुनीज़ा बानो
मुलाक़ात पब्लिकेशन, पेशावर
पर्काशक
मकतबा मुलाक़ात, दिल्ली
मुनज्ज़ा सलीम
सुलैमान मुनैज़ा पब्लिकेशन, पटना
मुनाज़िर हसनी नदवी
संपादक
न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
आशिक़ हुए हैं आप भी एक और शख़्स परआख़िर सितम की कुछ तो मुकाफ़ात चाहिए
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दियामेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई
चारपाई हिंदोस्तानियों की आख़िरी जाए-पनाह है। फ़तेह हो या शिकस्त वह रुख़ करेगा हमेशा चारपाई की तरफ़। फिर वह चारपाई पर लेट जाएगा। गायेगा, गाली देगा या मुनाजात बन्द्र-गाह क़ाज़ी-उल-हाजात पढ़ना शुरू कर देगा।...
या वुसअ'त-ए-अफ़्लाक में तकबीर-ए-मुसलसलया ख़ाक के आग़ोश में तस्बीह ओ मुनाजात
मुलाक़ात को शायरों ने कसरत के साथ मौज़ू बनाया है। शायर अपनी ज़िंदगी में जो भी कुछ हो लेकिन शाइरी में ज़रूर आशिक़ बन जाता है। इन शेरों में आप मुलाक़ात के मयस्सर न होने, मुलाक़ात के इंतिज़ार में रहने और मुलाक़ात के वक़्त महबूब के धोका दे जाने जैसी सूरतों से गुज़रेंगे।
बे-ख़ुदी शुऊर की हालत से निकल जाने की एक कैफ़ीयत है। एक आशिक़ बे-ख़ुदी को किस तरह जीता है और इस के ज़रीये वो इश्क़ के किन किन मुक़ामात की सैर करता है इस का दिल-चस्प बयान इन अशआर में है। इस तरह के शेरों की एक ख़ास जहत ये भी है कि इन के ज़रीये क्लासिकी आशिक़ की शख़्सियत की परतें खुलती हैं।
मुनाजातمناجات
hymns, prayer, supplication
ईश-प्रार्थना, खुदा की हम्दो- सना, ऐसा स्तुति गान जिसमें अपने लिए कुछ प्रार्थना भी हो।
व इय्याका नस्तईन
अबरार किरतपुरी
अन्य
शज़रा-ए-मुनाजात
सय्यद शाह मोहम्मद फ़रूक़
मुनाजात-ए-जावेद नामा
उबैदुल्लाह क़ुदसी
व्याख्या
मुक़ामात
एहसान दानिश
काव्य संग्रह
मुनाज़रे मुज़क्कर-ओ-मोअन्नस के
अता आबिदी
कहानी
निस्फ़ुल मुलाक़ात
फ़रमान फ़तेहपुरी
परिचय
मुलाकात
Ausata
महिलाओं की रचनाएँ
Adhoori Aurat
नॉवेल / उपन्यास
निस्फ़ मुलाक़ात
इमाम आज़म
पत्र
मुनज़्ज़ा
नसीमा मज़हर
मुलाक़ात
मोहम्मद अली असर
Shahr-e-Sukhan
ग़ज़ल
Shumaara Number-003
इक़बाल अख़्तर
Shumara Number-001
सईद अख़्तर
Dec 1969मुलाक़ात
शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाईअब के भी दिल की मुदारात न होने पाई
(1)ऐ सब से अव्वल और आख़िर
तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाएमुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
बात करने में तो जाती है मुलाक़ात की रातक्या बरी बात है रह जाओ यहीं रात की रात
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम होजिस सम्त सफ़र में है मिरी ज़ात वो तुम हो
सुब्ह के वक़्त ज़र्रे ज़र्रे कीवो मुनाजात याद आती है
आह मिस्र-ए-क़दीम का रूमान... पदमा वहाँ से उठकर दालान में आ गई। सौस क़ातिबों से निपट कर बाहर आया। उसके हाथ में एक पार्चा था। “तुम्हारी दिलचस्पी के लिए सहीफ़ा-ए-मुतव्वफ़ीन की एक हम्द निकाल कर लाया हूँ”, उसने पदमा को चिढ़ाने के लिए तबस्सुम के साथ कहा, इसका उ’नवान है,...
मौलाना कमज़ोरों और बेकसों के बड़े हामी थे। ख़ासकर औरतों की जो हमारे हाँ सबसे बेकस फ़िर्क़ा है, उन्होंने हमेशा हिमायत की “मुनाजात-ए-बेवा” और “चुप की दाद” ये दो ऐसी नज़्में हैं जिनकी नज़ीर हमारी ज़बान में क्या हिंदुस्तान की किसी ज़बान में नहीं। इन नज़्मों के एक एक मिसरे...
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