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हिंदी ग़ज़ल
न शम्अ है न परवाने ये कैसा रंग-ए-महफ़िल है
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आए
बलबीर सिंह रंग
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ग़ज़ल
कहाँ ये चाँद कहाँ तेरा हुस्न-ओ-रंग-ए-जमाल
तिरे बदन की तरह इस का ढाल थोड़ई है