मोहब्बत शायरी
मोहब्बत पर ये शायरी आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
sorrows other than love's longing does this life provide
comforts other than a lover's union too abide
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
what else is there now for me to view
I have experienced being in love with you
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
she would have had compulsions surely
faithless without cause no one can be
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
Love your sad conclusion makes me weep
Wonder why your mention makes me weep
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
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मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा
उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
Love is not in one's control, this is that fire roused
It cannot be willed to ignite, nor can it be doused
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है
उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है
आज देखा है तुझ को देर के बअ'द
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ