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नुशूर वाहिदी

1912 - 1983 | कानपुर, भारत

नुशूर वाहिदी

ग़ज़ल 58

नज़्म 6

अशआर 33

अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की

मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई

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दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है

चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए

नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए

मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ

मंज़िलों की बात है रास्ते में क्या कहूँ

क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है

जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते

पुस्तकें 40

वीडियो 15

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

नुशूर वाहिदी

Urdu Ghazal - Saqi ki begana rawish par kya ilzam lagaya jaaey

नुशूर वाहिदी

अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं

नुशूर वाहिदी

कभी सुनते हैं अक़्ल-ओ-होश की और कम भी पीते हैं

नुशूर वाहिदी

नादारों की ईद

ज़रदार नमाज़ी ईद के दिन कपड़ों में चमकते जाते हैं नुशूर वाहिदी

ऑडियो 9

आग़ोश-ए-रंग-ओ-बू के फ़साने में कुछ नहीं

चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए

नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है

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