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ग़ज़ल
ख़त-ए-साग़र में राज़-ए-हक़-ओ-बातिल देखने वाले
अभी कुछ लोग हैं साक़ी की महफ़िल देखने वाले
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
अब तो 'सरवर' 'इश्क़ ने आज़ाद ईमाँ कर दिया
लाख बहकाया करे फ़र्क़-ए-हक़-ओ-बातिल मुझे
राज कुमारी सूरज कला सरवर
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ग़ज़ल
मिरा तर्ज़-ए-सुलूक इस राह के रह-रौ न समझेंगे
मगर जो राहबर राह-ए-हक़-ओ-बातिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
हास्य
मक़्तूल क्या बताए है कौन उस का क़ातिल
कब जाने ख़त्म होगी ये जंग-ए-हक़-ओ-बातिल