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याद पर शेर

‘याद’ को उर्दू शाइरी

में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

बशीर बद्र

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब

आज तुम याद बे-हिसाब आए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

राहत इंदौरी

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

फ़िराक़ गोरखपुरी

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ

अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ

अनवर शऊर

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी

आप के बा'द हर घड़ी हम ने

आप के साथ ही गुज़ारी है

गुलज़ार

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तसद्दुक़ इस करम के मैं कभी तन्हा नहीं रहता

कि जिस दिन तुम नहीं आते तुम्हारी याद आती है

जलील मानिकपूरी

दिल धड़कने का सबब याद आया

वो तिरी याद थी अब याद आया

नासिर काज़मी

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

दाग़ देहलवी

क्या सितम है कि अब तिरी सूरत

ग़ौर करने पे याद आती है

जौन एलिया

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती

मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

हसरत मोहानी

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को

क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर

जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

अहमद फ़राज़

तुम ने किया याद कभी भूल कर हमें

हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया

बहादुर शाह ज़फ़र

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं

जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िर

अब किसे रात भर जगाती है

जौन एलिया

ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन दोस्त

वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

दिल को कई कहानियाँ याद सी के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद रहा है

नासिर काज़मी

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें

इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

जाँ निसार अख़्तर

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने दिया

जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

जोश मलीहाबादी

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब

इतना याद कि तुझे भूल जाएँ हम

अहमद फ़राज़

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद

वक़्त कितना क़ीमती है आज कल

शकील बदायूनी

याद उसे इंतिहाई करते हैं

सो हम उस की बुराई करते हैं

जौन एलिया

याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ

भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

जमाल एहसानी

''आप की याद आती रही रात भर''

चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब तो उन की याद भी आती नहीं

कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब तो हर बात याद रहती है

ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया

जौन एलिया

इक अजब हाल है कि अब उस को

याद करना भी बेवफ़ाई है

जौन एलिया

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़

नादान फिर वो जी से भुलाया जाएगा

मीर तक़ी मीर

जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है

जब याद हम जाएँ मिलने की दुआ करना

जलील मानिकपूरी

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी

हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब

छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा

अख़्तर अंसारी

कुछ ख़बर है तुझे चैन से सोने वाले

रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा

याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए

जौन एलिया

चोरी चोरी हम से तुम कर मिले थे जिस जगह

मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

हसरत मोहानी

तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी

कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो

जौन एलिया

तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान था

तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए

निदा फ़ाज़ली

वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ

हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ

इमाम बख़्श नासिख़

ज़रा सी बात सही तेरा याद जाना

ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी

नासिर काज़मी

दुनिया-ए-तसव्वुर हम आबाद नहीं करते

याद आते हो तुम ख़ुद ही हम याद नहीं करते

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि याद हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को

जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे

जोश मलसियानी

हम ही में थी कोई बात याद तुम को सके

तुम ने हमें भुला दिया हम तुम्हें भुला सके

हफ़ीज़ जालंधरी

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं

तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

ख़ुमार बाराबंकवी

आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा

आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई

इक़बाल अशहर

कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे

कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था

मुनव्वर राना

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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