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ग़ज़ल
देखा है जिन ने रू-ए-दिल-अफ़रोज़ को तिरे
बे-शक नज़र में बाग़-ए-इरम उस की बन लगा
बाक़र आगाह वेलोरी
ग़ज़ल
ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत
बख़्शे है यही गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
मीर मोहम्मदी बेदार
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नज़्म
समुंदर की जानिब से आती हवा में
शहर-ए-दिल-अफ़रोज़ का हमहमा था
ये शहर आज अश्कों में डूबा हुआ है
समीना राजा
ग़ज़ल
मैं कहाँ और कहाँ हुस्न-ए-दिल-अफ़रोज़ उन का
मिरे घर में वो तिरी शान नज़र आते हैं
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
यूँ तो ऐ यार-ए-दिल-अफ़रोज़ तू सब का है वले
दाग़ जाँ-सोज़ निराया है मिरी छाती का