ज़ुल्फ़ पर 20 बेहतरीन शेर
शायरी में ज़ुल्फ़ का मौज़ू बहुत दराज़ रहा है। क्लासिकी शायरी में तो ज़ुल्फ़ के मौज़ू के तईं शायरों ने बे-पनाह दिल-चस्पी दिखाई है ये ज़ुल्फ़ कहीं रात की तवालत का बयानिया है तो कहीं उस की तारीकी का। और उसे ऐसी ऐसी नादिर तशबहों, इस्तिआरों और अलामतों के ज़रिये से बरता गया है कि पढ़ने वाला हैरान रह जाता है। शायरी का ये हिस्सा भी शोरा के बे-पनाह तख़य्युल की उम्दा मिसाल है।
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हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए
उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
whether me or you, or miir it may be
are prisoners of her tresses for eternity
whether me or you, or miir it may be
are prisoners of her tresses for eternity
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टैग्ज़: ज़ुल्फ़और 1 अन्य
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
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टैग्ज़: अदाऔर 3 अन्य
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी
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टैग्ज़: ज़ुल्फ़और 2 अन्य
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
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टैग: ज़ुल्फ़
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
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टैग: ज़ुल्फ़
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
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टैग्ज़: ज़ुल्फ़और 1 अन्य
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
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टैग: ज़ुल्फ़
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी
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टैग्ज़: इजाज़तऔर 3 अन्य
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
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टैग्ज़: ख़्वाबऔर 1 अन्य
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
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टैग्ज़: ज़ुल्फ़और 1 अन्य
ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा
the priest has seen my piety, he hasn't seen your grace
he has not seen your tresses strewn across your face
the priest has seen my piety, he hasn't seen your grace
he has not seen your tresses strewn across your face
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टैग: ज़ुल्फ़
सब के जैसी न बना ज़ुल्फ़ कि हम सादा-निगाह
तेरे धोके में किसी और के शाने लग जाएँ
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टैग: ज़ुल्फ़
बाल अपने उस परी-रू ने सँवारे रात भर
साँप लोटे सैकड़ों दिल पर हमारे रात भर
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टैग: ज़ुल्फ़
ज़रा उन की शोख़ी तो देखना लिए ज़ुल्फ़-ए-ख़म-शुदा हाथ में
मेरे पास आए दबे दबे मुझे साँप कह के डरा दिया
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किसी के हो रहो अच्छी नहीं ये आज़ादी
किसी की ज़ुल्फ़ से लाज़िम है सिलसिला दिल का
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टैग: ज़ुल्फ़
गई थी कह के मैं लाती हूँ ज़ुल्फ़-ए-यार की बू
फिरी तो बाद-ए-सबा का दिमाग़ भी न मिला
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