विसाल पर 20 बेहतरीन शेर
महबूब से विसाल की आरज़ू
तो आप सबने पाल रक्खी होगी लेकिन वो आरज़ू ही क्या जो पूरी हो जाए। शायरी में भी आप देखेंगे कि बेचारा आशिक़ उम्र-भर विसाल की एक नाकाम ख़्वाहिश में ही जीता रहता है। यहाँ हमने कुछ ऐसे अशआर जमा किए हैं जो हिज्र-ओ-विसाल की इस दिल-चस्प कहानी को सिलसिला-वार बयान करते हैं। इस कहानी में कुछ ऐसे मोड़ भी हैं जो आपको हैरान कर देंगे।
टॉप 20 सीरीज़
- 20 बेहतरीन प्रेरणादायक शेर
- अंगड़ाई पर 20 बेहतरीन शेर
- अख़बार पर 20 बेहतरीन शेर
- अदा पर 20 बेहतरीन शेर
- आँख पर 20 बेहतरीन शेर
- आँसू पर 20 बेहतरीन शेर
- आईने पर 20 बेहतरीन शेर
- आदमी/इंसान शायरी
- इन्तिज़ार शायरी
- इश्क़ पर 20 बेहतरीन शेर
- उदास शायरी
- किताब शायरी
- ख़ामोशी पर शायरी
- चाँद पर 20 बेहतरीन शेर
- ज़िन्दगी शायरी
- जुदाई पर 20 बेहतरीन शेर
- ज़ुल्फ़ शायरी
- टूटे हुए दिलों के लिए 20 बेहतरीन शेर
- तन्हाई पर शेर
- तस्वीर पर 20 बेहतरीन शेर
- दर्द शायरी
- दिल शायरी
- दीदार पर शायरी
- दुआ पर 20 बेहतरीन शेर
- दुनिया शायरी
- दोस्त/दोस्ती शायरी
- धोखा पर 20 बेहतरीन शेर
- नए साल पर बेहतरीन शेर
- नुशूर वाहिदी के 20 बेहतरीन शेर
- फूल शायरी
- बारिश पर 20 बेहतरीन शेर
- बोसे पर 20 बेहतरीन शेर
- मुलाक़ात शायरी
- मुस्कुराहट शायरी
- मौत शायरी
- याद शायरी
- रेलगाड़ियों पर 20 बेहतरीन शेर
- वक़्त शायरी
- वफ़ा शायरी
- विदाई शायरी
- विसाल शायरी
- शराब शायरी
- सफ़र शायरी
- सर्वाधिक उद्धरित किए जाने वाले 20 बेहतरीन शेर
- स्वागत शायरी
- हुस्न शायरी
- होंठ पर शायरी
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
-
टैग्ज़: इंतिज़ारऔर 4 अन्य
शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
व्याख्या
शब-ए-विसाल अर्थात महबूब से मिलन की रात। गुल करना यानी बुझा देना। इस शे’र में शब-ए-विसाल के अनुरूप चराग़ और चराग़ के संदर्भ से गुल करना। और “ख़ुशी की बज़्म में” की रियायत से जलने वाले दाग़ देहलवी के निबंध सृजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शे’र में कई पात्र हैं। एक काव्य पात्र, दूसरा वो एक या बहुत से जिनसे काव्य पात्र सम्बोधित है। शे’र में जो व्यंग्य का लहजा है उसने समग्र स्थिति को और अधिक दिलचस्प बना दिया है। और जब “इन चराग़ों को” कहा तो जैसे कुछ विशेष चराग़ों की तरफ़ संकेत किया है।
शे’र के क़रीब के मायने तो ये हैं कि आशिक़-ओ-माशूक़ के मिलन की रात है, इसलिए चराग़ों को बुझा दो क्योंकि ऐसी रातों में जलने वालों का काम नहीं। चराग़ बुझाने की एक वजह ये भी हो सकती थी कि मिलन की रात में जो भी हो वो पर्दे में रहे मगर जब ये कहा कि जलने वालों का क्या काम है तो शे’र का भावार्थ ही बदल दिया। असल में जलने वाले रुपक हैं उन लोगों का जो काव्य पात्र और उसके महबूब के मिलन पर जलते हैं और ईर्ष्या करते हैं। इसी लिए कहा है कि उन ईर्ष्या करने वालों को इस महफ़िल से उठा दो।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
शब-ए-विसाल अर्थात महबूब से मिलन की रात। गुल करना यानी बुझा देना। इस शे’र में शब-ए-विसाल के अनुरूप चराग़ और चराग़ के संदर्भ से गुल करना। और “ख़ुशी की बज़्म में” की रियायत से जलने वाले दाग़ देहलवी के निबंध सृजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शे’र में कई पात्र हैं। एक काव्य पात्र, दूसरा वो एक या बहुत से जिनसे काव्य पात्र सम्बोधित है। शे’र में जो व्यंग्य का लहजा है उसने समग्र स्थिति को और अधिक दिलचस्प बना दिया है। और जब “इन चराग़ों को” कहा तो जैसे कुछ विशेष चराग़ों की तरफ़ संकेत किया है।
शे’र के क़रीब के मायने तो ये हैं कि आशिक़-ओ-माशूक़ के मिलन की रात है, इसलिए चराग़ों को बुझा दो क्योंकि ऐसी रातों में जलने वालों का काम नहीं। चराग़ बुझाने की एक वजह ये भी हो सकती थी कि मिलन की रात में जो भी हो वो पर्दे में रहे मगर जब ये कहा कि जलने वालों का क्या काम है तो शे’र का भावार्थ ही बदल दिया। असल में जलने वाले रुपक हैं उन लोगों का जो काव्य पात्र और उसके महबूब के मिलन पर जलते हैं और ईर्ष्या करते हैं। इसी लिए कहा है कि उन ईर्ष्या करने वालों को इस महफ़िल से उठा दो।
शफ़क़ सुपुरी
-
टैग्ज़: चराग़और 5 अन्य
बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं
-
टैग: बदन
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
-
टैग्ज़: जुदाईऔर 1 अन्य
ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई
-
टैग्ज़: आईनाऔर 3 अन्य
वो मिरी रूह की उलझन का सबब जानता है
जिस्म की प्यास बुझाने पे भी राज़ी निकला
व्याख्या
इस शे’र का विषय “रूह की उलझन” पर स्थित है। आत्मा की शरीर से अनुरूपता ख़ूब है। शायर का यह कहना है कि वो अर्थात उसका प्रिय उसकी आत्मा की उलझन का कारण जानता है। यानी मेरी आत्मा किस उलझन में है उसे अच्छी तरह मालूम है। मैं ये सोचता था कि वो सिर्फ़ मेरी आत्मा की उलझन को दूर करेगा मगर वो तो मेरे शरीर की प्यास बुझाने के लिए भी राज़ी होगया। दूसरे मिसरे में शब्द “भी” बहुत अर्थपूर्ण है। इससे स्पष्ट होता है कि शायर का प्रिय हालांकि यह जानता है कि वो आत्मा की उलझन में ग्रस्त है और आत्मा और शरीर के बीच एक तरह का अंतर्विरोध है। जिसका यह अर्थ है कि मेरे प्रिय को मालूम था कि मेरी आत्मा के भ्रम की वजह वास्तव में शरीर की प्यास ही है मगर प्रिय आत्मा की जगह उसके शरीर की प्यास बुझाने के लिए तैयार हो गया।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
इस शे’र का विषय “रूह की उलझन” पर स्थित है। आत्मा की शरीर से अनुरूपता ख़ूब है। शायर का यह कहना है कि वो अर्थात उसका प्रिय उसकी आत्मा की उलझन का कारण जानता है। यानी मेरी आत्मा किस उलझन में है उसे अच्छी तरह मालूम है। मैं ये सोचता था कि वो सिर्फ़ मेरी आत्मा की उलझन को दूर करेगा मगर वो तो मेरे शरीर की प्यास बुझाने के लिए भी राज़ी होगया। दूसरे मिसरे में शब्द “भी” बहुत अर्थपूर्ण है। इससे स्पष्ट होता है कि शायर का प्रिय हालांकि यह जानता है कि वो आत्मा की उलझन में ग्रस्त है और आत्मा और शरीर के बीच एक तरह का अंतर्विरोध है। जिसका यह अर्थ है कि मेरे प्रिय को मालूम था कि मेरी आत्मा के भ्रम की वजह वास्तव में शरीर की प्यास ही है मगर प्रिय आत्मा की जगह उसके शरीर की प्यास बुझाने के लिए तैयार हो गया।
शफ़क़ सुपुरी