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ग़ज़ल
दार-ओ-रसन की रेशा-दवानी गर्दन-ओ-सर तक रहती है
अहल-ए-जुनूँ का पाँव रहा है गर्दन-ओ-सर से आगे भी
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
वो तप-ए-इश्क़-ए-तमन्ना है कि फिर सूरत-ए-शम्अ'
शो'ला ता-नब्ज़-ए-जिगर रेशा-दवानी माँगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
राखी
चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी