aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "लकड़ी"
लकी फ़ारुक़ी हसरत
born.1990
शायर
लेडी बर्ड पब्लिकेशन, पेशावर
पर्काशक
लेडी एवलिन ज़ैनब कोबोल्ड
लेखक
लेडी मुरासाकी
लेडी ज़ैनब एवलिन कोब्बोल्ड
लकी फाइन आर्ट प्रिन्टिंग प्रेस, हैदराबाद
लकी प्रेस, हैदराबाद
मकतबा मिर्रीख़ लेडी इमाम हाउस, पटना
के ये जो मोहरे हैंसिर्फ़ लकड़ी के हैं खिलौने
शाम के क़रीब कैंप में जहां सिराजुद्दीन बैठा था। उसके पास ही कुछ गड़बड़ सी हुई। चार आदमी कुछ उठा कर ला रहे थे। उसने दरयाफ़्त किया तो मालूम हुआ कि एक लड़की रेलवे लाइन के पास बेहोश पड़ी थी। लोग उसे उठा कर लाए हैं। सिराजुद्दीन उनके पीछे पीछे...
छातियां दूध की तरह सफ़ेद थीं... उनमें हल्का-हल्का नीलापन भी था। बग़लों के बाल मुंडे हुए थे जिसकी वजह से वहां सुरमई गुबार सा पैदा हो गया था। रणधीर उस लड़की की तरफ़ देख देख कर कई बार सोच चुका था... क्या ऐसा नहीं लगता जैसे मैंने अभी अभी कीलें...
“तो मुझ से तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।” चमारों का कुनबा था और सारे गाँव में बदनाम। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम, माधव इतना कामचोर था कि घंटे भर काम करता तो घंटे भर चिलम पीता। इसलिए उसे कोई रखता ही न...
कभी तूफ़ान आ जाए, कोई पुल टूट जाए तोकिसी लकड़ी के तख़्ते पर
लकड़ीلکڑی
Lumber, Wood
जादू की लकड़ी
अशरफ़ सबूही
कहानी
लकड़ी का बारीक काम
सय्यद रज़ा अहमद साहब जाफ़री
Islam Aur Europe
विश्व इतिहास
Genji Ki Kahani
नॉवेल / उपन्यास
तरहदार लौंडी
मुंशी सज्जाद हुसैन
Hajj-e-Zainab
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Rahmatul-Lil-Aalameen
Shumaara Number-011
गुरू बख़्श सिंह
प्रीत लड़ी
सीरत से गुफ़्तुगू है क्या मो'तबर है सूरतहै एक सूखी लकड़ी जो बू न हो अगर में
ख़ाली सड़क पर बड़ी सफ़ाई से टांगा मोड़ कर उसने घोड़े को चाबुक दिखाया और आँख झपकने में वो बिजली के खंबे के पास था। घोड़े की बागें खींच कर उसने ताँगा ठहराया और पिछली नशिस्त पर बैठे बैठे गोरे से पूछा, “साहब बहादुर कहाँ जाना माँगटा है?” इस सवाल...
नमाज़ ख़त्म हो गई है, लोग बाहम गले मिल रहे हैं। कुछ लोग मोहताजों और साइलों को ख़ैरात कर रहे हैं। जो आज यहाँ हज़ारों जमा हो गए हैं। हमारे दहक़ानों ने मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर यूरिश की। बूढ़े भी इन दिलचस्पियों में बच्चों से कम नहीं हैं।...
रात को जब वो फिर उस कमरे में सुराही रखने के लिए आया तो उसने खूंटी पर लकड़ी के हैंगर में उस ब्लाउज़ को देखा। कमरे में कोई मौजूद नहीं था। चुनांचे आगे बढ़ कर पहले उसने ग़ौर से देखा। फिर डरते डरते उस पर हाथ फेरा। ऐसा करते हुए...
इससे फ़ारिग़ होकर उसने जाली के अंदर सारे बाल बड़े सलीक़े से जमाए और बनता सिंह से पूछा, “ओए बनतां सय्यां! चपड़ झुन झुन कहाँ गया?” बनता सिंह ने चीड़ की ख़ुश्क लकड़ी से बिरोज़ा अपने नाखुनों से जुदा करते हुए कहा, “कुत्ते को घी हज़म नहीं हुआ?”...
लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ाघोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
इम्तिहान ख़त्म होते ही मैंने दाऊ जी को यूँ छोड़ दिया गोया मेरी उनसे जान पहचान न थी। सारा दिन दोस्तों यारों के साथ घूमता और शाम को नाविलें पढ़ा करता। इस दौरान मैं अगर कभी फ़ुरसत मिलती तो दाऊ जी को सलाम करने भी चला जाता। वो इस बात...
ये न हो गर मैं हिलूँ तो गिरने लगे बुरादादुखों की दीमक बदन की लकड़ी निगल गई हो
आनंदी, “आज तो कुल पाव भर था। वो मैंने गोश्त में डाल दिया।” जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है। उसी तरह भूक से बावला इंसान ज़रा-ज़रा बात पर तुनक जाता है। लाल बिहारी सिंह को भावज की ये ज़बान-दराज़ी बहुत बुरी मालूम हुई। तीखा हो कर बोला।...
1 मुंशी साबिर हुसैन की आमदनी कम थी और ख़र्च ज़्यादा। अपने बच्चे के लिए दाया रखना गवारा नहीं कर सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की सेहत की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबर वालों से हेटे बन कर रहने की ज़िल्लत इस ख़र्च को बर्दाश्त करने पर मजबूर करती...
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