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ग़ज़ल
वामिक़ जौनपुरी
शेर
वामिक़ जौनपुरी
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नज़्म
जमालियात
जहाँ में जितने हैं फ़नकार उतनी तरह के हुस्न
तो क्या बंधे टिके मेयार-ए-नौ का इम्काँ है
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
ये माना हुस्न की फ़ितरत बहुत नाज़ुक है ऐ 'वामिक़'
मिज़ाज-ए-इश्क़ की लेकिन नज़ाकत और होती है
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
ये अर्श ओ फ़र्श की तफ़रीक़ कुछ नहीं 'वामिक़'
बुलंद ओ पस्त का मेयार-ए-ख़ाम बदलेगा