aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शहवत-परस्त"
शहवत-परस्त लोगों का क़ब्ज़ा है हर तरफ़यूँ हो रहा है चाक गरेबान-ए-शायरी
कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त हैहूरों पे मर रहा है ये शहवत-परस्त है
जिस तरह भंगन की लड़की को गंदगी का पहला टोकरा उठाते वक़्त घिन नहीं आएगी इसी तरह अपने पेशे का पहला क़दम उठाते वक़्त ऐसी वैश्याओं को भी हिजाब महसूस नहीं होगा। आहिस्ता-आहिस्ता हया और झिजक से मुताल्लिक़ा क़रीब क़रीब तमाम जज़्बात उनमें घिस घिस कर हट जाते हैं... चकले...
दिसंबर का महीना! स्टेशन मास्टर का घंटा... पौने आठ बजा रहा था। गाड़ी के आने में अब भी पंद्रह मिनट बाक़ी हैं। बीना ने सोचा और प्लेटफार्म के चक्कर लगाने लगी। छोटा सा स्टेशन। न किताबों और अख़बारों की दुकान। न कोई होटल। चाय की एक प्याली भी मिलनी मुम्किन...
“यूँ तो ये कहानी ब-ज़ाहिर जिन्सी नफ़सियात के एक नुक्ते के गिर्द घूमती है लेकिन दर-हक़ीक़त इसमें इंसान के नाम एक निहायत ही लतीफ़ पैग़ाम दिया गया है कि वो ज़ुल्म, तशद्दुद और बरबरीयत-ओ-हैवानियत की आख़िरी हुदूद तक पहुँच कर भी अपनी इंसानियत नहीं खोता। अगर अशर सिंह अपनी इंसानियत...
शहवत-परस्तشہوت پرست
lusty
क्या यही ज़िंदगी है कि हमअपने होने की ख़ुशियाँ मनाते रहें
रात दाढ़ी के अँधेरे से तकल्लुफ़ बरतेअर्श के सामने रुस्वाई की गर्दन न उठे
असलम की आँख देर से खुल चुकी थी लेकिन वो दम साधे हुए बिस्तर पर पड़ा रहा। कमरे के अंदर भी उतना अंधेरा न था जितना कि बाहर। क्यों कि दुनिया कुहासे के काफ़ुरी कफ़न में लिपटी हुई थी ताहम इक्का दुक्का कव्वे की चीख़ पुकार और बर्फ़ पर रेंगती...
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