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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
आग़ाज़-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शामत से
आँखों में फूल खिलाता है तलवों में काँटे बोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
तंज़-ओ-मज़ाह
गदा समझ के वो चुप था मिरी जो शामत आए उठा और उठ के क़दम मैंने पासबाँ के लिए...