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नज़्म
सफ़र-ए-आख़िर-ए-शब
सतीज़ा-कार रहे हैं जहाँ भी उलझे हैं
शिआर-ए-राह-ए-ज़नाँ से मुसाफ़िरों के क़दम
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
कह दो बक़्क़ाल पिसर से कि मिरा दिल ले कर
क़स्द-ए-अख़्ज़-ए-दिल-ए-अग़्यार न हाँ कीजिएगा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
नज़्म
पयाम-ए-हस्ती
जो इस आलम में चलना है तुझे हुक्म-ए-अइद्दू पर
तो इस्तेदाद-ए-दफ़ा-ए-हमला-ए-अग़्यार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
लेख
दिल में छुरी चुभो मज़ा गर ख़ूँ-फ़िशाँ नहीं गुंजाइश-ए-अ'दावत-ए-अग़्यार इक तरफ़...