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ग़ज़ल
शिकायत-ए-सितम-ए-रोज़गार करता हूँ
ख़िज़ाँ के दौर में ज़िक्र-ए-बहार करता हूँ
सय्यद अख़्तर अली अख़्तर
ग़ज़ल
सितम तो ये है कि हम ख़ुद सितम के ख़ूगर हैं
शिकायत-ए-सितम-रोज़गार क्या कहिए
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
नज़्म
तर्ज़-ए-हयात
फ़ुर्सत तिरी अज़ीज़ है मंज़िल की राह ले
कब तक शिकायत-ए-सितम-ए-आसमाँ रहे
अमीर औरंगाबादी
ग़ज़ल
शिकायत-ए-सितम-ए-दुश्मनाँ मैं क्या करता
कि भूलता ही नहीं लुत्फ़-ए-दोस्ताँ मुझ को
अब्बास अली ख़ान बेखुद
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तंज़-ओ-मज़ाह
वो हमसे भी ज़्यादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का...
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
वाइ'ज़ शराब-ओ-हूर की उल्फ़त में ग़र्क़ है
है सर से पाँव तक ये सितम-गर तमाम हिर्स