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ग़ज़ल
मिरा सर कट के मक़्तल में गिरे क़ातिल के क़दमों पर
दम-ए-आख़िर अदा यूँ सज्दा-ए-शुकराना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
कुछ अपने दिल की ख़ू का भी शुक्राना चाहिए
सौ बार उन की ख़ू का गिला कर चुके हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
इताब ओ लुत्फ़ जो फ़रमाओ हर सूरत से राज़ी हैं
शिकायत से नहीं वाक़िफ़ हमें शुक्राना आता है
हैदर अली आतिश
नज़्म
नर्गिस-ए-मस्ताना
जो मौज उठे दिल से तिरे जोश-ए-तलब में
सर रख के वहीं सज्दा-ए-शुकराना बना दे
जिगर मुरादाबादी
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ग़ज़ल
हुस्न-ए-काफ़िर से किसी की न गई पेश 'फ़िराक़'
शिकवा यारों का न शुकराना-ए-अग़्यार चला