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नज़्म
अभी कुछ और ठहर
मुझे ये शाम भी तुझ सी हसीन लगती है
गुज़रती शाम के संदल से आसमान पे देख
अमित गोस्वामी
शेर
वज्ह-ए-सुकूँ न बन सकीं हुस्न की दिल-नवाज़ियाँ
बढ़ गईं और उलझनें तुम ने जो मुस्कुरा दिया