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ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ठहरो तेवरी को चढ़ाए हुए जाते हो किधर
दिल का सदक़ा तो अभी सर से उतर जाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
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ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-हुस्न का सदक़ा कोई जाता है दुनिया से
किसी की ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
माँ तिरे जाने के बा'द
कौन अब मेरे लिए दस्त-ए-दुआ' फैलाएगा
किस तरह आफ़ात का सदक़ा उतारा जाएगा
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नअत
हैं अर्ज़-ओ-समावात तिरी ज़ात का सदक़ा
मुहताज है ये सारी ख़ुदाई तिरे दर की