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ग़ज़ल
सवाद-ए-रौमत-उल-कुबरा में दिल्ली याद आती है
वही इबरत वही अज़्मत वही शान-ए-दिल-आवेज़ी
अल्लामा इक़बाल
तंज़-ओ-मज़ाह
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
तोड़ इस का रुमत-उल-कुबरा के ऐवानों में देख
आल-ए-सीज़र को दिखाया हम ने फिर सीज़र का ख़्वाब
अल्लामा इक़बाल
रेखाचित्र
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
हिलाल-ए-ईद
क्यूँ इशारा है उफ़ुक़ पर आज किस की दीद है
अलविदा'अ माह-ए-रमज़ाँ वो हिलाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
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तंज़-ओ-मज़ाह
हिज़्ब-उल-अल्लाह
ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
आज़ाद मर्द हो के रहे हम क़ुयूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
नज़्म
फ़सील-ए-शब
दामन-ए-दिल पे ग़ुबार-ए-रह-ए-मंज़िल है अभी
पा-ए-अफ़्कार में देरीना सलासिल है अभी
क़ैसर-उल जाफ़री
शेर
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से
अभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो
बेख़ुद देहलवी
नज़्म
अयादत
ये कौन आ गया रुख़-ए-ख़ंदाँ लिए हुए
आरिज़ पे रंग-ओ-नूर का तूफ़ाँ लिए हुए