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ग़ज़ल
हम-नवाओ दोस्तो फ़िक्र आज की करो
कल का तज़्किरा ही क्या जो हुआ गुज़र गया
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
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ग़ज़ल
अब तो ख़ुद अपनी फ़िरासत से हूँ मैं भी मश्कूक
हम-नवाओं मैं ये इज़हार करूँ या न करूँ