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ग़ज़ल
सिखा दिया है ये दरबाँ को उस परी-रू ने
'इनायत' आए तो कह दे हुज़ूर घर में नहीं
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
शान-ए-ख़ुदा कि तान 'इनायत' पे वो करें
जो लोग तानसेन के ख़ुद रिश्ता-दार हैं
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
मेहर ने सुन के ये अशआ'र 'इनायत' से कहा
तुम 'निज़ामी' हो कि 'सादी' हो कि 'ख़ाक़ानी' हो
इनायत अली ख़ान इनायत
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ग़ज़ल
उस के लहजे में कोई चीज़ तो शामिल थी कि आज
दिल पे इस हर्फ़-ए-इनायत ने गिराँ-बारी की
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वो हर्फ़-ए-आरज़ू जिस पर मुकम्मल ज़ब्त है अब तक
कहीं ऐसा न हो शर्मिंदा-ए-इज़हार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ
किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ